2211 -2211 -2211 -22
जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और
आ चल कि चलें ढूँडें कोई ऐसा जहाँ और
दुनिया का सफ़र मुझ पे गिराँ होने लगा है
कहती है मेरी तब्अ' कि ठहरूँ न यहाँ और
आते हैं नज़र फिर से मुझे पस्ती के इम्कान
लगता है कि बाक़ी हैं अभी संग-ए-गिराँ और
भड़की हुई आतिश न बुझे ख़ून-ए-जिगर से
इस इश्क़ के दरिया में जले आब-रसाँ और
अब सहरा की लहरें नज़र आती हैं…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 29, 2023 at 7:18pm — No Comments
रिश्ते सब बिखर गये
दोस्त उज़्र कर गये
वक़्त की हवा में रुख़ों से नक़ाब उतर गये
हम तो बस वफ़ाओं का मज़ार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
ग़म की धूप धीरे-धीरे सब नमी चुरा गई
पत्तियों का नूर और कली का रूप खा गई
मेरे आशियाँ पे कोई बर्क़-सी गिरा गई
ख़ाक भी न मिल सकी कि इस तरह जला गई
ज़ख़्म हो गए हरे
खिल गए, जो थे भरे
दब चुके तमाम दर्द फिर उभर-उभर गये
हम तो बस अचेत-से
मुट्ठियों की…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 9, 2023 at 1:16am — No Comments
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