मात्रिक बहर
२२/२२/२२/२२/
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अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर,
जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.
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ग़ैरों से इतना न खुला कर,
दिल नौचेंगे ...मौका पा कर.
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नया तज़्रबा है हर धोका,
जश्न मनाओ बोतल ला कर.
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तुम समझे लोबान जला है,
मैं रक्साँ था ज़ख्म जला कर.
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मैंने ख़ुद को तर्क किया है,
तेरी मर्ज़ी हाँ कर...ना कर.
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शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर.
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यादों को हम याद आएं हैं,
लौट आयी हैं वापस,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 8:58am — 10 Comments
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