क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
जिसका विधान न हो!
न अनुनय के शब्द रहे
तेरी प्रार्थना रिक्त रहे
और प्रार्थी का तुझ
सम्मुख; कोई मान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह…
ContinueAdded by वेदिका on June 26, 2013 at 2:30am — 26 Comments
व्यथा!
तुम
मन के किबाड़े
खोलना मत
खोलना मत
सौ तरह के
व्यंग होगे
धूल धूसर
संग होंगे
भाव कोई गैर
अपनी
भावना में
घोलना मत
घोलना मत
व्यथा!
खुद से कहना
खुद ही सहना
तेरी
अंतर यातना
पर किसी से
बोलना मत
बोलना मत
व्यथा!
गीतिका 'वेदिका'
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by वेदिका on June 22, 2013 at 10:06pm — 32 Comments
साथी!
जिस राह पे चलकर तुम जाते
वह राह मनचली
क्यों मुड़ के लौट नही आती ...
ये बैरन संध्या
हो जाये बंध्या
न लगन करे चंदा से
न जन्में शिशु तारे
बस यहीं ठहर जाये
ये शाम मुंहजली
जो मुड़ के लौट नही पाती ...
श्वासों के तार
ताने पल पल
न टूट जायें
ये अगले पल
ले जाओ दरस हमारा
दे जाओ दरस तुम्हारा
यह लिखती पत्र पठाती
यह राह मनचली
जो मुड़ के…
Added by वेदिका on June 5, 2013 at 11:00am — 25 Comments
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