२२१/२१२१/१२२१/२१२
पाँवों में छाले देख के राहें नहीं खिली
दिनभर थकन से चूर को रातें नहीं खिली।१।
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सुनते हैं खूब रख रहे पहलू में अजनबी
यार ए सुखन से आपकी आँखें नहीं खिली।२।
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थकते न थे जो दूरी का देते उलाहना
उनकी ही मुझको देख के बाँछें नहीं खिली।३।
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लोटा है साँप फिर से जो उसके कलेजे पर
कहता है कौन घर मेरे रातें नहीं खिली।४।
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लाया करोना दर्द तो राहत भी साथ में
ताजी हवा में कौन सी साँसें नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 29, 2020 at 9:20am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मारा करे हैं लोग जो गम को शराब से
लाते खुशी को देखिए कितने हिसाब से।१।
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खुशबू है भारी भूख पे सुनते जहान में
गेहूँ रहा अलीक न यूँ ही गुलाब से।२।
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लाता नहीं है होश भी अपने ही साथ क्यों
शिकवा है हमको एक ही यारो शबाब से।३।
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साधी है हमने यूँ नहीं हर एक तिश्नगी
गुजरा है अपना दौर भी यारो सराब से।४।
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उनको तो कुर्सी चाहिए पापों की नींव पर
मतलब न रखते आज भी सेवक सवाब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2020 at 11:11am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
छलकी बहुत शराब क्यों राजन तुम्हें पता
उसका नहीं हिसाब क्यों राजन तुम्हें पता।१।
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हालत वतन के पेट की कब से खराब है
देते नहीं जुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।२।
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हम ही हुए हैं गलमोहर इस गम की आँच से
बाँकी हुए गुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।३।
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हर झूठ सागरों सा है इस काल में मगर
सच ही हुआ हुबाब क्यों राजन तुम्हें पता।४।
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सुनते थे इन का ठौर तो बस रेगज़ार में
सहरा में भी सराब क्यों राजन तुम्हें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2020 at 10:30am — 13 Comments
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गंगा जी ने जिस दिवस, धरे धरा पर पाँव
माने गंगा दशहरा, मिलकर पूरा गाँव।१।
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विष्णुपाद से जो निकल, बैठी शंकर भाल
प्रकट रूप में फिर चली, गोमुख से बंगाल।२।
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करती मोक्ष प्रदान है, भवसागर से तार
भागीरथ तप से हुआ, हम सबका उद्धार।३।
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गोमुख गंगा धाम है, चार धाम में एक
जिसके दर्शन से मिटें, मन के पाप अनेक।४।
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अमृत जिसका नीर है, जीवन का आधार
अंत समय जो ये मिले, खुले स्वर्ग का द्वार।५।
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अद्भुत गंगाजल कभी, पड़ें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 1:39pm — 4 Comments
रहेगा साथ सूरज यूँ सदा उम्मीद क्या करना
जलेगा साँझ होते ही दिया उम्मीद क्या करना।१।
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जो बरसाता रहा कोड़े सदा निर्धन की किस्मत पर
करेगा आज थोड़ी सी दया उम्मीद क्या करना।२।
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बनाये दूरियाँ ही था सभी से गाँव में भी जो
नगर में उससे मिलने की भला उम्मीद क्या करना।३।
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चला करती है उसकी जब इसी से खूब रोटी सच
वो देगा छोड़ छलने की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 5:00am — 4 Comments
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