रहेगा साथ सूरज यूँ सदा उम्मीद क्या करना
जलेगा साँझ होते ही दिया उम्मीद क्या करना।१।
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जो बरसाता रहा कोड़े सदा निर्धन की किस्मत पर
करेगा आज थोड़ी सी दया उम्मीद क्या करना।२।
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बनाये दूरियाँ ही था सभी से गाँव में भी जो
नगर में उससे मिलने की भला उम्मीद क्या करना।३।
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चला करती है उसकी जब इसी से खूब रोटी सच
वो देगा छोड़ छलने की कला उम्मीद क्या करना।४।
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हटाने का लगा नारा मिला करती है कुर्सी जब
करेंगे वो गरीबी को विदा उम्मीद क्या करना।५।
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जिन्हें आलोचना से ही नहीं फुर्सत पुराने की
रचेंगे देश में वो भी नया उम्मीद क्या करना।६।
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जमाना व्यस्त छूने में गगन के चाँद तारों को
वो देगा इस गरीबी की दवा उम्मीद क्या करना।७।
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मजा आता है जिसको बस सदा लाशें बिछाने में
चलेगा शव किसी का वो उठा उम्मीद क्या करना।८।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
इंगित मिसरे में आपका कथन उचित है । पर जिस प्रकार हिन्दी में सहीह" को सही के रूप में स्वीकार किया गया है उसी प्रकार "विदा'अ" को विदा के रूप मेंं । इसी कारण मैंने इस रूप में लिखा है । इसे अन्यथा नहीं लेंगे । सादर ...
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'करेंगे वो गरीबी को विदा उम्मीद क्या करना'
आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "विदा'अ' 121 है ।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, आदाब । बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने। शेअ'र दर शेअ'र दाद पेश करता हूँ ।
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