For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

करता रहा था जानवर रखवाली रातभर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये
दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।
**
कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं
मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।
**
करता रहा था जानवर रखवाली रातभर
बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।
**
अपनी हुई न आज भी  पतवार कश्तियाँ
क्या  खूब  दोस्ती  यहाँ  तूफान  कर गये।४।
**
दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।
**
माटी भी उनके पाँव की हमको अजीज है
जो भी वतन के इश्क में विषपान कर गये।६।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 1066

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2020 at 4:40pm

आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक न्धन्यवाद।

Comment by नाथ सोनांचली on June 5, 2020 at 1:45pm

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2020 at 1:06pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 31, 2020 at 11:44am

हार्दिक बधाई आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।

माटी भी उनके पाँव की हमको अजीज है
जो भी वतन के इश्क में विषपान कर गये।६

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2020 at 11:03am

आ. भाई राम अवध जी , सादर अभिवादन । गजल की सराहना के लिए आभार ।

दिये गये मिसरे में वीरान  नहीं बदनाम है गौर से देखिएगा ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 31, 2020 at 10:14am

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी आदाब। 

खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।

कारण से कुछ के मस्जिदें वीरान हो गईंं

 इस मिसरे में ताकीदे लफ़्ज़ी का ऐब आ गया है।  इसको ऐसा किया जा सकता है

कुछ कारणों से मस्जिदें वीरान हो गईंं

दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब

वज्न बह्र में सही है। हाँ नीचे के मिसरे में

मरकर भी अपनी देह को जो दान कर गये

करने से भर्ती का शब्द यूँ को हटाया जा सकता है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2020 at 9:41am

आ. भाई अवनीश जी, गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on May 31, 2020 at 9:32am

करता रहा था जानवर रखवाली रातभर।

बरबाद दिन में खेत को इंसान कर गए।

बहुत ही उम्दा सर।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on May 31, 2020 at 9:31am

करता रहा था जानवर रखवाली रातभर।

बरबाद दिन में खेत को इंसान कर गए।

बहुत ही उम्दा सर।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on May 31, 2020 at 9:29am

बहुत उम्दा अशआर।बहुत बहुत धन्यवाद सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
9 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service