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Shashi bansal goyal's Blog – June 2015 Archive (3)

एक पल ( लघुकथा )

अचानक भड़का दंगा और ऑटो की पिछली सीट पर बैठी बेहद भयभीत युवती । दूर - दूर तक कोई सूरत नहीं बच निकलने की ।अजीब सी कशमकश थी ऑटो छोड़ भागूँ या युवती की मदद करूँ ? जो कि कहीं से भी संभव नहीं दिख रही थी ।लोग और पास , और पास आते जा रहे थे ।सहसा लड़की ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया । उसकी आँखों में मृत्यु का उतना डर नहीं था जितना अपनी होने वाली दुर्गति का ।बस सिर्फ एक पल था मेरे पास निर्णय लेने को , और उस एक पल में ही मैंने माचिस की तीली सुलगा दी ।ऑटो धू-धू कर जलने लगा । ऊपर उठती लपटें राहत महसूस कर रही थीं ,… Continue

Added by shashi bansal goyal on June 19, 2015 at 5:00pm — 8 Comments

सौदा ( लघुकथा )

"वाह बनर्जी साहब ! आपके बाग़ की खूबसूरती देख़ कर हृदय गदगद हो जाता है ।और हो भी क्यों न ? आपने जो अपने बच्चों की तरह इन्हें सजाने-सँवारने में जीवन लगा दिया ।"



"हाँ लालाजी ।जवानी में यही सोच के रोपे थे कि इनकी छाँव में अपनी जीवन संध्या गुजारूँगा ।सो बस वही कर रहा हूँ ।"



" पर मैंने सुना है , आप सारे पेड़ों के फल पड़ौसियों और रिश्तेदारों में मुफ़्त ही बाँट देते हैं।भला ये क्या मूर्खता हुई , जबकि आपको इन उन्नत किस्मों के बाज़ार में मुँह-माँगे दाम मिल सकते हैं।"



" लालाजी !… Continue

Added by shashi bansal goyal on June 15, 2015 at 9:30pm — 16 Comments

कबाड़ ( लघुकथा )

"बाऊजी ! बच्चों के इम्तहान शुरू हो रहे हैं ।आपकी बहू चाहती थी , बेहतर होता अगर आप कुछ रोज़ भाईसाहब के यहाँ हो आते ।"
" पर बेटा ! अभी तो समय पूर्ण होने में दो माह बाकी हैं ।"
" वो तो ठीक है , पर आप तो जानते हैं , घर में एक ही अतिरिक्त कमरा है , वो भी ......।"
" कबाड़ी वाला ....कबाड़ी ....। बाऊजी ! कुछ कबाड़ है क्या ? "
"हाँ है तो.... शायद तुम्हारे बाजार में भी इसका कोई मोल न होगा...।"
मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on June 11, 2015 at 8:30am — 26 Comments

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