ज़िन्दगी का सफ़र कितना ही कठिन हो मगर,
हँस कर गुज़ार ही लूंगी!
संघर्षो की तपती धूप में तपकर,
अवसादों की गहरी छाया में चलकर,
मंजिल को पा ही लूंगी!
लम्बी पगडंडियों में चलते चलते अक्स
काँटों की छुअन से मनन विचलित होता हैं,
तो भी इस कटीली छुअन से ज़िन्दगी का सार ही लूंगी!
Added by Vasudha Nigam on July 28, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
यूँ ज़िन्दगी में आया पहला प्यार
जैसे रेत की तपन में पड़ गई सावन की फुहार
तुमको देखा तो लगा की बस यहीं हैं
जिस पर करना हैं अपना सब कुछ निसार
घंटो छत पर कड़ी धुप में खड़े रहते थे हम
इस इंतज़ार में की बस एक बार हो जाये तेरा…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 25, 2011 at 3:37pm — 4 Comments
वो नन्हा सा था,
थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,
नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,
पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,
हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,
थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,
पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!
सोचती थी कैसे…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 19, 2011 at 10:06am — 3 Comments
Added by Vasudha Nigam on July 5, 2011 at 1:00pm — 1 Comment
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