दोहा पंचक. . . ( क्रोध )
क्रोध मूल है बैर का, करे बुध्दि का नाश ।
काट सको तो काट दो ,क्रोध रास का पाश ।।
रिश्तों को पल में करे, खाक क्रोध की आग ।
जीवन भर मिटते नहीं, इन जख्मों के दाग ।।
क्रोध पनपता है वहाँ , होता जहाँ विरोध ।
हरदम चाहे आदमी , लेना बस प्रतिशोध ।।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित परिणाम ।
जीवित रहते शूल से, अंतस में संग्राम ।।
मित्र क्रोध से क्रोध का, मुश्किल है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 21, 2023 at 2:07pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ. . . .
समझा दिया
मतलब मोहब्बत का
गिर कर
हथेली पर
एक आँसू ने
*
प्यास
एक हसीं अहसास
सुलगते अरमानों की
*
तन से दूर
मन के पास
मन की प्यास
*
आँखों में
करतीं रास
दरस की प्यास
*
जीवन
मरीचिका
सिर्फ
प्यास ही प्यास
सुशील सरना / 5-7-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2023 at 3:08pm — No Comments
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