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SudhenduOjha's Blog – July 2016 Archive (3)

चेहरे को देख कर, मुझे समझाता रहा वो प्यार

  1. चेहरे को देख कर, मुझे
    समझाता रहा वो प्यार
    भीतर में झांक कर, मेरा
    सहरा नहीं देखा

    दुनिया के ठहाकों में
    कुछ इस तरह खोया
    झील में दर्द मेरा
    ठहरा नहीं देखा

    मौन से, निश्शब्द
    चेहरों से डरे हुक्काम
    सत्य पर इस क़दर
    पहरा नहीं देखा

    राम-लक्ष्मणों के तीर
    क्या भ्रष्ट हो गए
    हर साल बिना रावण
    दशहरा नहीं देखा

मौलिक एवं अप्रकाशित

सुधेन्दु ओझा

Added by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — No Comments

गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी

गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी

गिरा हुआ हूँ मुझको

उठाओ कभी-कभी

आँखों में यूंही लौट के,

आओ कभी-कभी



हसरत थी कि झूम के,

होंठों को चूम लूं

हौसले को मेरे,

बढ़ाओ कभी-कभी

जो भी मिला वही मुझे, 

कुछ दाग़ दे गया

दागों की दास्ताँ भी,

सुनाओ कभी-कभी



राहों में रोक कर मुझे,

दहला रहे सवाल

इनके जवाब लेके भी,

आओ कभी-कभी



तुझे साथ लेके चलने पे,

ज़माने को…

Continue

Added by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — 6 Comments

मेरी हर अच्छी बात तुम हो.

मेरी हर अच्छी बात तुम हो.

तुम कहाँ हो,

क्यों गुम-सुम हो.

सुनो,

मेरी हर अच्छी बात

तुम हो.

अब, दल-दल साफ हो गया है.

उफ़्फ़ ये बसंत

और खुशबू,

मौसम भी 'आप' होगया है.

हरी दूब पर आँखें,

मन कहीं और उलझा है,

तुम नजदीक हो,

पर छूने नहीं देता,

प्यार एक अजीब-

सा फलसफा है.

जाने कैसे,

लोग तुम्हें, देखते ही-

पहचान लेते हैं.

हमें तो हरपल,

आप,

नए दिखते…

Continue

Added by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:00pm — No Comments

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