मौलिक एवं अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — No Comments
गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी
गिरा हुआ हूँ मुझको
उठाओ कभी-कभी
आँखों में यूंही लौट के,
आओ कभी-कभी
हसरत थी कि झूम के,
होंठों को चूम लूं
हौसले को मेरे,
बढ़ाओ कभी-कभी
जो भी मिला वही मुझे,
कुछ दाग़ दे गया
दागों की दास्ताँ भी,
सुनाओ कभी-कभी
राहों में रोक कर मुझे,
दहला रहे सवाल
इनके जवाब लेके भी,
आओ कभी-कभी
तुझे साथ लेके चलने पे,
ज़माने को…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:30pm — 6 Comments
मेरी हर अच्छी बात तुम हो.
तुम कहाँ हो,
क्यों गुम-सुम हो.
सुनो,
मेरी हर अच्छी बात
तुम हो.
अब, दल-दल साफ हो गया है.
उफ़्फ़ ये बसंत
और खुशबू,
मौसम भी 'आप' होगया है.
हरी दूब पर आँखें,
मन कहीं और उलझा है,
तुम नजदीक हो,
पर छूने नहीं देता,
प्यार एक अजीब-
सा फलसफा है.
जाने कैसे,
लोग तुम्हें, देखते ही-
पहचान लेते हैं.
हमें तो हरपल,
आप,
नए दिखते…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 3, 2016 at 9:00pm — No Comments
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