१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जहाँ श्री राम की मूरत वहीं सीता बिठाते हैं
जपें जो नाम राधा का वहीं घनश्याम आते हैं
करें पूजन हवन जिनका करें हम वंदना जिनकी
वही दिल में हमारे ज्ञान का दीपक जलाते हैं
लिए विश्वास के लंगर चलें जो पोत के नाविक
समंदर के थपेड़ों से नही वो डगमगाते हैं
पराये देश में जाकर भले दौलत कमाएँ हम
हमारे देश के मौसम हमें वापस बुलाते हैं
भरे हम बैंक कितने भी मगर क्या बात गुल्लक…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 27, 2016 at 8:18pm — 9 Comments
पड़े आफ़ात तो छुपता किसी मशहूर का बेटा
कलेजा शेर का रखता मगर मजदूर का बेटा
कहीं ऊपर जमीं के उड़ रहा मगरूर का बेटा
जमीं को चूमता चलता किसी मजबूर का बेटा
कई तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दें
पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा
सिखाने पर परायों के भरा है जह्र नफरत का
चला हस्ती मिटाने को कोई अखनूर का बेटा
कदम पीछे हटा लेता जहाँ उसकी जरूरत हो
हर इक रहबर फ़कत कहने को है जम्हूर का बेटा
सरापा थाम…
Added by rajesh kumari on August 23, 2016 at 6:32pm — 23 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
फिसलकर नींद से टूटे हुए सपने कहाँ रक्खूँ
ज़फ़ा की धूप में सूखे हुए गमले कहाँ रक्खूँ
इबादत में वजू करती मुक़द्दस नीर से जिसके
पुरानी उस सुराही के बचे टुकड़े कहाँ रक्खूँ
परिंदे उड़ गए अपनी अलग दुनिया बसाने को
बनी मैं ठूँठ अब उस नीड के तिनके कहाँ रक्खूँ
भरा है तल्खियों से दिल कोई कोना नही ख़ाली
तेरी यादों के वो बिखरे हुए लम्हे कहाँ रक्खूँ
तुझे चेह्रा दिखाने पर तेरे पत्थर ने जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 21, 2016 at 11:30am — 13 Comments
डेढ़ साल हो चुका था नकुल को गये आज भी उस घर की दीवारों चौखटों से सिसकियों की आवाज सुनाई देती है बगीचे के हरे सफ़ेद लाल फूल उस तिरंगे झंडे की याद दिलाते हैं जिसमें लिपटा हुआ उस घर का चिराग कुछ वक़्त के लिए रुका था | नई नई दुल्हन की कुछ चूड़ियाँ आज भी उस तुलसी के पौधे ने पहन रक्खी हैं | घर में से बीमार माँ की खाँसी की आवाजें कराह में बदलती हुई सुनाई देती हैं|
किसी वक़्त प्रतिदिन पांच किलोमीटर दौड़ने वाले रामलाल की लाठी की ठक-ठक सुबह-सुबह सुनाई दी तो बदरी प्रसाद ने गेट खोल दिया दोनों…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 7, 2016 at 7:00pm — 36 Comments
“अब बोल चारू कैसे आना हुआ कैसे याद आ गई आज मेरी ” जूही ने चाय के प्याले हटाते हुए प्यार से ताना देते हुए कहा|
“बस ये समझ ले मेरा उस जगह से मन भर गया तू यहाँ मेरे लिए मकान ढूँढ ले ”|
“फिर भी बता न क्या हुआ?”
“तुझे याद होगा मैंने एक बार बताया था कि मेरे घर के ठीक सामने सड़क के दूसरी पार गाडियालुहारों ने अपनी झोंपड़ियाँ डाल रक्खी हैं | जिनका काम लोहे से औजार व् बर्तन बनाना फिर उनको आस पास के घरों में बेचना होता है” |
“हाँ हाँ याद है…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 2, 2016 at 11:28am — 23 Comments
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