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सालिक गणवीर's Blog – August 2021 Archive (2)

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी

पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)

माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने

रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)

मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ

कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)

है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा

था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)

ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे

हाकिम की उसी पर ही इनायत भी…

Continue

Added by सालिक गणवीर on August 16, 2021 at 8:37pm — 15 Comments

ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते

मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)

खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर

कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)

इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में

अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)

उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा

वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)

छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा

डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने…

Continue

Added by सालिक गणवीर on August 6, 2021 at 11:01pm — 8 Comments

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