2122 2122 2122 2
मर रहे क्यूँ नाम के अखबार की खातिर
कब बने तमगे कहो फनकार की खातिर।1
लिख रहे जो बात कुछ भी काम आये तो
गर बहें आँसू किसी दरकार की खातिर।2
चाँद-सूरज जल रहे फिर मोम गलती है,
रूठते हैं कब भला उपहार की खातिर।3
बाढ़ आती है जहाँ कुछ- कुछ पनपता है
है कहाँ सब लाजिमी घर-बार की खातिर।4
खुद खुशी हित थी लिखी बहु जन मिताई ही
लिख रहे कुछ लोग निज उपकार की खातिर।5
शोखियों का शौक रखते बदगुमां कुछ…
Added by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 7:00am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 20, 2016 at 6:30am — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 17, 2016 at 9:30am — 4 Comments
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