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Manan Kumar singh's Blog – August 2018 Archive (3)

गजल(उजाले..लुभाने लगे हैं)

122 122 122 122

उजाले हमें फिर लुभाने लगे हैं

नया गीत हम आज गाने लगे हैं।1

बढ़े जो अँधेरे, सताने लगे हैं

गये वक्त फिर याद आने लगे हैं।2

कदम से कदम हम मिलाके चले थे

पहुँचने में क्यूँ फिर जमाने लगे हैं? 3

लुटे जालिमों से,यहाँ भी ठगे हम

लुटेरे मसीहा कहाने लगे हैं।4

अदाओं ने मारा बहाने बनाकर,

बसे जो ज़िगर खूं बहाने लगे हैं।5

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on August 14, 2018 at 7:13pm — 11 Comments

गजल(जब सँभलना...)

2122 2122 212
जब सँभलना आदमी को आ रहा
घुट्टियों का खेल खेला जा रहा।1

पाँव भारी हो गए हैं शब्द के
अर्थ क्या से क्या निकाला जा रहा।2

क्या कुलाँचे भर सकेगा अब शशक
घाव घुटनों में मुआ चिपका रहा।3

थम गई थीं आँधियाँ दुर्द्वंद्व की
कौन जहरीली हवा भड़का रहा?4

चैन से नीरो बजाता बंसियाँ
धुन वही हर शख्स फिर-फिर गा रहा।5
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on August 5, 2018 at 8:03pm — 3 Comments

जब सँभलना.....(गजल)

2122   2122  212

जब सँभलना आदमी को आ रहा

घुट्टियों का खेल खेला जा रहा।1



पाँव भारी हो गए हैं शब्द के

अर्थ क्या से क्या निकाला जा रहा।2



पोथियाँ जज़्बात से घायल हुईं

जो नहीं समझा वही समझा रहा।3



क्या कुलाँचे भर सकेगा अब शशक

घुन मुआफ़िक पाँव कोई खा रहा।4



थम गई थीं आँधियाँ दुर्द्वंद्व की

कौन जहरीली हवा भड़का रहा?5



चैन से नीरो बजाता बाँसुरी

धुन वही हर शख्स फिर-फिर गा रहा।6



कोयलों की बस्तियाँ अब मौन… Continue

Added by Manan Kumar singh on August 5, 2018 at 7:30pm — 8 Comments

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