एक दोहा गज़ल - नज़रें -(प्रथम प्रयास )
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार ।
नज़र नज़र में बिक गया, एक जिस्म सौ बार।
*
नजरों को झूठी लगे, अब नजरों की प्रीत ,
हवस सुवासित अब लगे, नजरों की मनुहार ।
*
नजरों से छुपती नहीं , कभी नज़र की बात ,
नजरें करती हैं सदा, नजरों से व्यापार ।
*
भद्दा लगता है बड़ा ,काजल का शृंगार ,
लुट जाता है जब कभी ,नजरों का संसार ।
*
कह देती है हर नज़र , अन्तस की हर बात ,
कहीं नज़र की जीत है, कहीं नज़र की…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2021 at 11:12pm — 7 Comments
दोहा मुक्तक :.....
1
मिथ्या मैं की डुगडुगी, मिथ्या मैं के ढोल ।
मिथ्या मैं का आवरण, मिथ्या मीठे बोल ।
मिथ्या जग के कहकहे, मिथ्या सब सम्बंध -
मिथ्या मौसम प्रीत के, मिथ्या प्रीत के कौल ।
............................................................
2
हर लकीर में जिन्दगी, जीती एक विधान ।
मरता है सौ बार तब , जीता है इन्सान ।
रख पाया है वक्त की, वश में कौन लगाम -
श्वास पृष्ठ पर है लिखा, आदि संग अवसान ।
सुशील सरना / 29-8-21
मौलिक…
Added by Sushil Sarna on August 29, 2021 at 10:48am — 4 Comments
मन पर कुछ दोहे : ......
मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।
मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।
मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।
मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।
मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।
मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।
मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।
मन में…
Added by Sushil Sarna on August 3, 2021 at 9:28pm — 4 Comments
मौसम को .....
सुइयाँ
अपनी रफ्तार से चलती रहीं
समय
घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा
मौसम
समय के काँधे पर
अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा
बदले मौसम की बयार को छूकर
झुकी टहनियाँ
स्मृतियों में
पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच
सुनाती रहीं
मौसम को
वायु वेग से
रेत पर छोड़े पाँव के निशान
उड़- उड़ कर
अपनी व्यथा सुनाने लगे
मौसम को
झील के पानी में निस्तब्धता
दिखाती रही…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2021 at 1:59pm — 17 Comments
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