वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
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मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
*
बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
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लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
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हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
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गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
झेलती मझधार अपनी जिन्दगी
कब लगेगी पार अपनी जिन्दगी ।१।
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आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
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शब्द इस में है न कोई हर्ष का
बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
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यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
होती गर त्यौहार अपनी जिन्दगी।४।
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हम ने ही जन्जीर बाँधी पाँव को
कैसे ले रफ्तार अपनी जिन्दगी ।५।
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सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
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हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
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पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
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बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
२१२२/२१२२/२१२
होंठ हँसते हैं तो मन में पीर है
जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
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जो सिखाता था कलम ही थामना
वो भी हाथों में लिए शमशीर है।२।
*
झूठ को आजाद रक्खा नित गया
सच के पाँवों में पड़ी जंजीर है।३।
*
हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
*
रास नेताओं से करती है बहुत
रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
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इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
झूठ की भी क्या गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
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सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे का सदा अभिसार नेता जी।२।
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जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का कभी आभार नेता जी।३।
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बने केवल धनी का ही सहारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments
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