१२२/१२२/१२२/१२२
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न मन के सहारे रहे साथ अपने
न सुख के पिटारे रहे साथ अपने।।
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कभी साथ देने न मझधार आयी
कि सूखे किनारे रहे साथ अपने।।
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बहारें भले मुह फुलाती हों अब भी
खिजां के नजारे रहे साथ अपने।।
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खुशी ने जो पाले अछूतों में गिनते
दुखों के दुलारे रहे साथ अपने।।
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नदी नीर मीठा लिए गुम गयी पर
समन्दर वो खारे रहे साथ अपने।।
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भले आज फैली अमा हर तरफ हो
कभी चाँद तारे रहे साथ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 29, 2022 at 9:30pm — 8 Comments
सिन्दूर कह न सिर्फ सजाने की चीज है
पुरखे बता गये हैं निभाने की चीज है।।
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इससे बँधा है जन्मों का रिश्ता जमाने में
हक और सिर्फ प्रीत से पाने की चीज है।।
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भरते ही माग इससे जो विश्वास जागता
भूली जो पीढ़ी उसको बताने की चीज है।।
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मन में जगाता प्रेम समर्पण के भाव को
केवल न रीत सोच निभाने की चीज है।।
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इससे हैं मिटाती दूरियाँ केवल न देह की
ये दो दिलों को पास में लाने की चीज है।।
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छीनो न भाव इसका भले आधुनिक हुए
ये तो जमीर नर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2022 at 6:18am — 5 Comments
२२१/२१२१/२२१/२१२
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फिरती स्वयम् से पूछती राधा कहाँ गये
भक्तों के दुख को भूल के कान्हा कहाँ गये/
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होने लगा जगत से है नित नाश धर्म का
आने का फिर से भूल के वादा कहाँ गये/
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गोकुल हो मथुरा द्वारका कन्सों का राज है
जन-जन से ऐसे तोड़ के नाता कहाँ गये/
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रिश्ते जहाँ में छल के ही आवास अब बने
होता सभा में मान का सौदा कहाँ गये/
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आओ मिटाने पीर को जन-जन पुकारता
मुरली छिपाये लोक के राजा कहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 9:34am — 3 Comments
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