पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय
मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय
अनुशासित होकर रहे पतंग उड़े अकास
भागी फिरे कुरंग सम डोर पिया के पास
सिकुड़े गलियारे सहन ऊँची मन दहलीज
गलती माली की रही कैसे बोये बीज
कब तक परछाई चले पूछ न कितनी दूर
धूप चढ़े सिर बावरी छाया थक कर चूर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by vandana on September 7, 2013 at 7:00am — 12 Comments
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