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Janki wahie's Blog – September 2017 Archive (3)

रानी (लघुकथा )जानकी बिष्ट वाही

"बेचारी ?"

सामने वाली झुग्गी में इस नई ब्याही को।पति रोज काम पर जाते बाहर से ताला ठोक जाता है जैसे उसकी दिल की रानी को कोई चोर न ले जाय पीछे से।

छुटकी, बड़की को देख फिस्स से हँस दी।

" उसकी नज़र से देखा जाय तो ये मेहरारू ही उसका धन है।गज़ब की सुंदर जो है ।"

बड़की ने हँसी में साथ दिया।



वे दोनों रोज उसकी खूबसूरत पनीली बड़ी-बड़ी आँखें छुपकर देखने का मोह नहीं छोड़ पाती हैं ।जब से वह आई है उनका नीरस जीवन सरस हो उठा है। वर्ना सारा दिन यूहीं निकल जाता है जब से पढ़ाई… Continue

Added by Janki wahie on September 30, 2017 at 1:04am — 4 Comments

रानी (लघुकथा )जानकी बिष्ट वाही

"बेचारी ?"

सामने वाली झुग्गी में इस नई ब्याही को।पति रोज काम पर जाते बाहर से ताला ठोक जाता है जैसे उसकी दिल की रानी को कोई चोर न ले जाय पीछे से।

छुटकी, बड़की को देख फिस्स से हँस दी।

" उसकी नज़र से देखा जाय तो ये मेहरारू ही उसका धन है।गज़ब की सुंदर जो है ।"

बड़की ने हँसी में साथ दिया।



वे दोनों रोज उसकी खूबसूरत पनीली बड़ी-बड़ी आँखें छुपकर देखने का मोह नहीं छोड़ पाती हैं ।जब से वह आई है उनका नीरस जीवन सरस हो उठा है। वर्ना सारा दिन यूहीं निकल जाता है जब से पढ़ाई… Continue

Added by Janki wahie on September 30, 2017 at 1:04am — No Comments

हौसला ( लघुकथा -जानकी बिष्ट वाही )

गोधूलि बेला में भी जब वह नौजवान उस चट्टान से नहीं उठा तो तो मेरा मन आशंकित हो उठा।साँझ तेजी से कालिमा के आगोश में समा रही थी और सागर की उत्ताल लहरें पागलों की तरह उस नौजवान के पाँवों से कुछ नीचे चट्टानों पर अपना सिर पटक रही थीं।

जब भी मैं कभी उदास या खुश होता हूँ तो यहाँ आकर सागर को निहारना मुझे सुक़ून देता है।



अब मैं घर जाना चाहता है पर उस नौजवान की भावभँगिमा मेरे पाँवों की बेड़ी बन मुझे रोक रही है।



"छोड़ो ,मुझे क्या? होगा कोई ? मैंने क्या सारी दुनिया का ठेका ले रखा… Continue

Added by Janki wahie on September 23, 2017 at 1:19pm — 18 Comments

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