करो कितना विवेचन
शैलियों , पांडित्य का, लेकिन
भावों के धरातल पर ही
गौतम बुद्ध बनते हैं
हुए तर्कों , वितर्कों से परे
वे शुद्ध हो गए
प्रकृति के सब प्रपंचों से
निरुद्ध , प्रबुद्ध हो गए
जो खेलें दूसरों की गरिमा से
उन्मत्त होते हैं
सदा जो प्रेम से भरपूर
वे ही सन्त होते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 18, 2019 at 10:30pm — 1 Comment
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