कलियुग
उषा अवस्थी
ब्रह्मज्ञानी उपहास का पात्र है
अर्थार्थी सिर का ताज है
किसको ,कब पटखनी दें? आँखें गड़ाए हैं
मिलते ही मौका, धूल में मिलाए हैं
कलियुग है,चाहते अपनी वज़ाहत है
दूसरों को मारकर जीने की चाहत है
श्रमिकों की मेहनत का हक़, हक़ से लेते हैं
जन्म-जन्मांतर पापों को ढोते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 23, 2023 at 5:37am — 2 Comments
मन नहीं है
उषा अवस्थी
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
क्या कहें ? साहित्य के नाम पर
चलाए जा रहे व्यापार में
ख़रीद-फ़रोख़्त के बाज़ार में
बिकने का मन, नहीं है
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
इस दुनिया की इक छोटी सी बस्ती में
रहती हूँ, कोई बड़ी हस्ती नहीं हूँ मैं
शकुनी की शतरंजी झूठी इन चालों से
मोहरों के बेवजह…
ContinueAdded by Usha Awasthi on September 21, 2023 at 6:30am — 4 Comments
प्रकृति
उषा अवस्थी
पैसे देकर छ्प गए
ढोया झूठा भार
भावों के सौदागरों का
चलता व्यापार
अक्षर-अक्षर, शब्द हैं
"वाणी" का उपहार
सर्व- समर्थ अनन्त से
जिसके जुड़ते तार
ठुकराती दुर्गा उन्हे
जिनमें अहं विकार
सन्मार्गी को चल स्वयं
दिखलाती प्रभु- द्वार
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 15, 2023 at 1:50am — No Comments
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