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Ganga Dhar Sharma 'Hindustan''s Blog – September 2014 Archive (2)

मिलन

मिलन

.

क्या मिलन परिणाम यही है ?

.

संध्या मिलन के हित वासर 

निज अस्तित्व को खो देता 

नद नदी में ,नदी उदधि में 

मिल खोते स्वनाम सभी हैं |

क्या मिलन परिणाम यही है ?

.

जब जब मिले धनुष से तीर 

पलटे वो खाकर दुत्कार 

लक्ष्य से मिल जाये यदि तो 

करता घायल प्राण यही है |

क्या मिलन परिणाम यही है ?

.

क्षिति मिलन के हित से अम्बर 

झुकने पर बाध्य नित्य हुआ 

दिशा मिलन की असीम दौड़ 

कि दौड़ा पवमान नहीं है ||

क्या मिलन परिणाम…

Continue

Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 4, 2014 at 7:47am — 1 Comment

चुनरी निचोड़ रही थी।

बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी।

कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी।

चालक- परिचालक दोनों में

बस के चारों ही कोनों में

मची हुई होड़ा-होड़ी थी

सब्र सभी ने छोड़ी थी

इंद्रजाल का पाश पड़ा था

या फिर कोई नशा चढ़ा था

जिसने एक झलक भी पा ली

रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था

कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली।

जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली।

हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। …

Continue

Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 2, 2014 at 10:00pm — 2 Comments

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