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आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये

आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये
जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये

हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था
हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये

अपने  पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो 
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये

फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है
कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये

टपटप टपके थे आँसू तब 'हिन्दोस्ताँ ' की आँखों से
अपनों के हाथों अपनों के क़त्ल कराने याद आये

मौलिक एवम् अप्रकाशित 

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Comment by TEJ VEER SINGH on December 25, 2016 at 6:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गंगाधर शर्मा जी। बहुत शानदार गज़ल।

Comment by Samar kabeer on December 25, 2016 at 2:56pm
जनाब गंगाधर शर्मा 'हिन्दोस्तान'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर की लय एक बार चेक कर लें ।
गिरह के मिसरे में 'तेरे'की जगह "अपने"कर लें,क्योंकि सानी मिसरे में 'तुम'शब्द है ।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 11:20am
आदरणीय गंगाधर शर्मा जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई। मतले में 'निसाने' को 'निशाने' कर लीजिएगा। सादर।

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