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मोहन बेगोवाल's Blog – September 2015 Archive (3)

ग़ज़ल

१ २ १ २ १ २ १ २ १ २ १ २ २ २
नही आये जो तुम बना लिए बहाना है |
हमें उमीद में तेरी शमाँ जलाना है |
हसीं लबों का मुस्कराना गुम गया तेरा,
हमें तलाश फिर वही उसे सजाना है |
अभी नई कहानी जिन्दगी लिखें तेरी,
ये फैसला करेंगे कब इसे सुनाना है |
चलो उसी से कोई बात अंधेरें की हो,
बता देगा कहाँ चिराग़ ये जलाना है |
ये खुदकशी नहीं लगे हुई कोई साजिस,
बहार जिंदगी, न मौत उस बुलाना है |

Added by मोहन बेगोवाल on September 10, 2015 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल

२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २ २ २

याद तेरी को ऐसे दिल में छुपा रक्खा है 

राह जिस पे चले उस को भी भूला रक्खा है 

लोग सो जाए हमें नींद न आती है अब ,

रात कैसा तेरा अब साथ निभा रक्खा है 

क्यूँ बता दी हमें उसकी ये कहानी तुमने ,

जो  रहा…

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Added by मोहन बेगोवाल on September 5, 2015 at 4:30pm — 4 Comments

आखिरी सलाम (लघुकथा)

आज उस के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी । परनीत को लगा जैसे सपना पूरा हो रहा हो । परिवार में ख़ुशी और उदासी दोनों एक साथ नजर आई। पहले जब वो बगैर वीज़ा लोटा तो कई दिन वह उदास रहा था,उसे लगा शायद वह जा न पाऐगा, मगर ऐजेंट ने हौसला देते हुए पूरा यकीन दिलाया था कि बैंड भी पूरे और खाते में बनती रकम भी जमा हो गई है । पर इस बार वीज़े के साथ जाने की टिकट मिल गई । जैसी हवा चली हर कोई , अब तो पूरे एवन्यू में कोई ऐसा घर नहीं जिस में परनीत की उम्र का कोई लड़का हो । परनीत के  ज्यादातर साथी भी स्टूडेंट वीज़ा से बाहर…

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Added by मोहन बेगोवाल on September 3, 2015 at 9:00pm — 6 Comments

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