For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज उस के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी । परनीत को लगा जैसे सपना पूरा हो रहा हो । परिवार में ख़ुशी और उदासी दोनों एक साथ नजर आई। पहले जब वो बगैर वीज़ा लोटा तो कई दिन वह उदास रहा था,उसे लगा शायद वह जा न पाऐगा, मगर ऐजेंट ने हौसला देते हुए पूरा यकीन दिलाया था कि बैंड भी पूरे और खाते में बनती रकम भी जमा हो गई है । पर इस बार वीज़े के साथ जाने की टिकट मिल गई । जैसी हवा चली हर कोई , अब तो पूरे एवन्यू में कोई ऐसा घर नहीं जिस में परनीत की उम्र का कोई लड़का हो । परनीत के  ज्यादातर साथी भी स्टूडेंट वीज़ा से बाहर जा चुके थे और कुछ को पी. आर भी मिल गई। घर के लोग चाहते तो न थे कि उसे भेजें ,इतनी बड़ी रकम का प्रबंध करना और घर को संभालने वाला भी न रहना। मगर आखिरकार परनीत की ज़िद के आगे  सब झुक गए ।


सब के लिए सवाल तो यह भी खड़ा हो गया था, जैसे वो पढाई में था । यहाँ उसे अच्छी संस्था में दाखले की उम्मीद न थी । फिर सोचा गया अगर पैसा लगना हैं तो क्यों न स्टडी वीज़ा से पढ़ाई की जाए ,क्या पता बाद में पी. आर मिल जाए । चाहे मास्टर सुरिन्दर की बातें सुन उसके मन में दुविधा चल रही थी,जब उसने कहा उसका लड़का अमेरिका पढ़ रहा है, तो उसे लगा जैसे वह उस से बहुत बड़ा हो गया हो । इस बात ने उसे अंदर से हिला दिया जब उस ने कहा "इस २० तारीख को उसके भतीजे का गोरों ने गोलीयां मार कत्ल कर दिया मगर अब तो जाने के तैयारी चल रही है" ।
अचानक शाम को छोटे भाई का गाँव से फोन आया कि परनीत के दादा जी की तबियत अचानक बिगड़ गई है और पता नहीं कब...., उसी समय वह गाँव की तरफ चल पड़े,अभी घर की दहलीज़ पाँव रखा,छोटा उठ उससे लिपट गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा ।
रात के दस बज चुके थे, कल दिल्ली से १२ बजे परनीत की फलाईट भी।उसके  पास बैठे रिश्तेदारों ने आखिर फैसला यह लिया कि आग तो तुझे ही दिखानी होगी । मगर इस लिए लाश को अभी तो हस्पताल की मोर्चरी में रख देते हैं । जब आप  दिल्ली से वापस आयंगे तो संस्कार होगा ........।
शहर के हस्पताल की मोर्चेरी में लाश को रख ,वो सीधा घर आया, परनीत जाने के लिए पहले से तैयार था । दोनों अंदर बैठे और टैक्सी दिल्ली की तरफ चल पड़ी, उसे ऐसे लगा जैसे बाप इस दुनिया को आखिरी सलाम और परनीत इस धरती को आखिरी सलाम कह कर पी. आर. पाने के लिए जा रहा हो ।

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:00pm

आदरनीय भाई , बहुत भावुक कर दिया आपकी कथा ने , आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by pratibha pande on September 6, 2015 at 2:31pm

बहुत भावुक करती रचना  ,  हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मोहन जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 2:08pm

दोनों तरह की विदाई के अपने-अपने अर्थ हैं ?  

लघुकथा की प्रस्तुति केलिए शुभकामनाएँ 

Comment by Archana Tripathi on September 6, 2015 at 12:52am
आदरणीय मोहन बेगोवेल जी ,अत्यंत उत्कृष्ट रचना रची है आपने हार्दिक बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 4, 2015 at 4:27pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल सर इस सशक्त और संवेदना जगाती रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:15pm

//मगर इस लिए लाश को अभी तो हस्पताल की मोर्चरी में रख देते हैं । जब दिल्ली से वापस आयंगे तो संस्कार होगा ........।//दिल को छूती हुई ,  ओह ! अपने -अपने हिट को साधते आज के युवा मन के  संवेदनाओं की  जमीनी हकीकत बयां करती एक सुन्दर रचना आदरणीय मोहन जी । इस  सुंदर लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service