दो दिन से भूखा-प्यासा कबीर धूल भरी पगडंडियों में भटक रहा है।अज़ब है उसकी जिंदगी भी,दुनिया वालों के लिए अनाथ और पागल, न उसकी कोई जाति न कोई धर्म,जाने किसने,कब ,कहाँ,उसका नाम कबीर रख दिया। लोगों के रहमों करम से मिल गया तो खा लिया, हिन्दू के घर से रोटी ली तो मुसलमान के घर से सब्जी, स्वाद में कोई फ़र्क नहीं। गाँव दर गाँव नापता।
इधर सरहद पर तनातनी के बाद मरघट सी ख़ामोशी हवाओं में सरसरा रही है।मीलों आदमजात की आमद दरफ्त नहीं हैं।बेज़ार भटकता कबीर उस गाँव में पहुँचा तो लगा मकानों के…
Added by Janki wahie on October 6, 2016 at 11:30am — 9 Comments
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