छा रहा है गगन में कुछ कुछ उजाला
बढ़ रही है पूर्व दिशि की लालिमा
जगमगाते तारे भी फीके पड़े हैं
घट रही है यामिनी की कालिमा
चन्द्रमा निस्तेज होकर जा छुपा है
मंद पड़ती श्वेत किरणों को समेटे
चाहता है पश्चिमी दिव्यांगना के
पास जाकर गोद में कुछ काल लेटे
हाथ थामे दिग्वधू का आ रहे हैं
तिमिर के बैरी प्रभु श्री अंशुमाली
मंद वायु भी लगी है मुस्कुराने
छिप गयी है कही जाकर रात काली
हिमगिरी…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 19, 2013 at 12:20pm — 13 Comments
उठते बैठते बस एक ही ख्याल हुआ
क्यूँ जीना भी इस कदर मुहाल हुआ
लुटी आबरू तो चुप हैं सफ़ेद-पोश
ख़ामो ख्वाह की बातों पर बवाल हुआ
जलाता है रावण खुद अपना ही बुत
तमाशा ये देखो हर साल हुआ
जुबां…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 3, 2013 at 6:43pm — 22 Comments
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