ऊँचे तो वही उठ पाएंगे
जो सत्य की गहराई
झूठ का उथलापन
जान जाएंगे
जो सत्य को कमजोर समझते
विनम्रता का तिरस्कार करते
वैराग्य का उपहास उड़ाते हैं
वह बुद्धि बल से पंगु
अपनी दुर्बलता छिपाते हैं
जो सत्य को तोड़ते, मरोड़ते हैं
वे साहित्यकार नहीं
चाटुकार होते हैं
दिन कहाँ समान रहते हैं?
सत्य है, आज इसकी
कल उसकी झोली भरते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 27, 2021 at 10:36pm — 10 Comments
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