धरती के पुत्रों, उठो
उषा अवस्थी
शरद चन्द्र तुम न दिखे
घटा घिरी घनघोर
गरज - चमक कर बरसता
मेघा,ओर न छोर
जो अमृत था बरसता
हमें मिला न आज
पर्व न उस विधि मन सका
जैसा साजा साज़
वृक्ष, पहाड़ों का किया
अपने हाथ विनाश
अब रोने से है भला
क्या आएगा हाथ?
धरती के पुत्रों उठो
समय नहीं है शेष
चुन उपयोगी पौध को
रोपो , मिटे कलेश
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 9, 2022 at 11:05pm — No Comments
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