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अजब इक तमाशा है ये ज़िन्दगी भी।
बिछड़ना है सबकुछ मगर दिल्लगी भी।।
बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।
मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।
जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।
है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।। (सूखापन)
कहानी मुहब्बत की है तो पुरानी।
नयी सी मगर इसमें है ताजगी भी।।
न समझा कोई हुस्नो-इश्को-वफ़ा पर।
हरिक को है पर इनसे बावस्तगी* भी।। (सम्बद्धता)
ये माना कि बरबादियाँ भी बहुत की।…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 19, 2015 at 1:30pm — 6 Comments
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