जो अपने इल्म-ओ-मेहनत से जहाँ सारा सजा देते
ये मेहनत गांव में करते तो घर अपना बना लेते ..१
भरम तो टूटते हैं तब वतन की याद आती जब
अगर पैसे से मिलता तो सुकूँ थोडा मंगा लेते ...२
कहाँ मालूम था परदेस भी दर है जलालत का
नहीं तो हम कभी भी गांव से क्यों कर विदा लेते ?...३.
हंसी में इस तरह मायूसियत हरगिज़ नहीं होती
ज़रा अपने वतन की खिलखिलाहट को सजा लेते…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 29, 2011 at 8:00am — 3 Comments
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