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क्या नहीं ये अजीब हसरत है ?
ग़म किसी का किसी की राहत है
ख़ाक में हम मिलाना चाहें जिसे
उनको ही सारी बादशाहत है
रोटी कपड़ा मकान में फँसकर
बुजदिली, हो चुकी शराफत है
हर्फ करते हैं प्यार की बातें
आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है
मुज़रिमों को मिले कई इनआम
आज मजलूम की ये क़िस्मत है
बेरहम क़ातिलों को मौत मिली
सेक्युलर कह रहे , शहादत है
हाँ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 10:30am — 30 Comments
Added by Samar kabeer on December 2, 2015 at 4:08pm — 14 Comments
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