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किसी मायने में भी कमतर नही हूँ
मगर पूजा जाऊं वो पत्थर नहीं हूँ
इसी को तो कहते है किस्मत भी शायद
तेरा हो के तेरा मुकद्दर नहीं हूँ
मेरी साइतों में ‘‘ठहरना’’ नही है..
मैं दरिया हूँ प्यासा ; समन्दर नहीं हूँ
पलटकर जरा देख इक़ बार फिर से
यही सोच लूँ गुजरा मंजर नहीं हूँ.
तेरे कू पे बैठा अगरचे हूँ लेकिन
जो कुछ मांगे मैं वो कलंदर नहीं…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on December 14, 2015 at 11:04am — 6 Comments
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