अब जब दामिनी चली गई है
चले जा चुके हैं उसके हत्यारे भी
वो नर पशु
जिनसे सब स्तब्ध रहे
दरिंदगी से त्रस्त रहे
हर तरफ मौत की मांग उठती रही
दबती रही उठती रही बिलखती रही
मेरी भी एक मांग रही
कि एक बार मुझे उन नर-पशुओं की माताओं से मिलाया…
ContinueAdded by amita tiwari on December 26, 2020 at 3:00am — 2 Comments
नंगे पाँव
ठंड मे ठिठुरते
फुला फुला के गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास गाँव है
गरीब सही पर सुरक्षित पाँव हैं
ठंड मे ठिठुरते
नंगे पाँव गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
इसी उम्र के अपने नौनिहालों को याद करना
उनके लिए शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास बल है बलबूते हैं
उनके पास पाँव हैं
पाँव…
ContinueAdded by amita tiwari on December 10, 2020 at 2:30am — 5 Comments
मेरे छोटे से बेटे तक ने थाली सरका दी । कहा नहीं खाऊँगा । इस खाने को उगाने वाले अन्नदाता यदि भूखे हैं ,बेघर हैं उनकी आवाज़ गले मे घुट रही है तो नैतिकता की मांग है कि मुझे ये खाना खाने का हक़ नहीं है । नहीं जानता हूँ कि कौन कितना गलत है या सही है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसे मौसम मे घर छोडने का ,सड़कों पर बैठने का और सर पर कफन बांधने का शौक किसी को नहीं हो सकता । जब भविष्य अंधकारमय लगता है तभी वर्तमान ऐसे कदम उठाता है तब जीवन और मौत मे कोई अंतर नहीं रह जाता है । एक आम…
ContinueAdded by amita tiwari on December 9, 2020 at 1:43am — 8 Comments
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