ज़मीन पर पड़ा अवशेष
बरगद का मूल आधार शेष
सोचता है आज
कल तक था बरगद विशाल
बरगदी सोच,बरगदी ख्याल
बरगदी मित्र ,मन भी बरगदी
सहयोगी प्रतिद्वंदी बरगदी बरगदी
गर्वित निज का उत्कर्ष रहा
शेष की लघुता पर हर्ष रहा
निज तक की जड़ को नहीं ताका
गैर की छांह को कभी न लांघा
झुकना न सीखा सूखना न जाना
मनना न सीखा रूठना न जाना
आंधी को थकाया
मेघों को रुलाया
जलते सूरज को छतरी बनाया
धरा थरथराई पर बरगद को क्या
अम्बर घरघराया पर बरगद को क्या
बरगद था बरगद बरगद ही रहा
अकडा हुआ ,निज दम्भ में जकड़ा हुआ
वक्त कब किसका इक जैसा रहा
बरगद कैसे अछूता रहता
वही बरगद अकडा बरगद कल धराशायी हो गया
विशालता का वजूद खो गया
लक्कड़ हारा विजयी हो गया
किसी को कब फर्क पड़ता है
किसी को कोइ फर्क न पड़ा
धरा का चक्का चलता था चलता रहा
सृष्टि ऐसे ही चलती है आयी
शबनम तक ने इक बूँद न बहाई
छांह साथ छोड़ गयी
पंछी पखेरू उड़ गए
पातों ने रंग बदला
कोमल किसलय झड गए
बस एक नन्ही दूब रही
जो निरपेक्ष न रह पायी
नन्ही दूब
द्रवित हो गयी
आँचल फैलाया हाथ बढाया और
बरगद के बाकि को गोद ले लिया
...................
मौलिक एव अप्रकाशित
Comment
आ० चेतन प्रकाश जी
सुप्रभात
आपकी टिप्पणी और सुझावों के लिए आभारी हूँ .विश्वास करिये कि मेरी प्रतिक्रिया सकारात्मक ही है .आपका सम्मान करते हुए ही मैंने और अधिक जिज्ञासा प्रकट की थी .वर्तनी दोष सुधरने का प्रयास करूंगी .
साभार
अमिता
आद0 अमिता तिवारी जी सादर अभिवादन। बढ़िया सृजन है। बधाई स्वीकार जी
आ.अमिता तिवारी जी, समीक्षक की दृष्टि से जो औचित्य पूर्ण लगा, मैं कह चुका हूँ। आप उसे सकारात्मक ढंग से लें तो कृपा होगी, अन्यथा क्षमा प्रार्थी हूँ । रहा वर्तनी दोष देखिएगा , त्रुटियाँ 1 लक्कड़हारा 2 बाकि 3 आंधी 4 छांह 5 एक नहीं कई स्थानों पर आपने ड़ को डाँट ही लिखा है ।
आ ० कबीर जी
बहुत बहुत आभार
अमिता
आ ० चेतन प्रकाश जी
सुप्रभात
आपकी टिप्पणी के लिए आभार . अनावश्यक तुकांतता यदि कहीं लगी है तो भी कहना चाहती हूँ कि यह सायास नहीं है .और यदि भाव प्रवाह कहीं अवरुद्ध हुआ हो तो कृपया इंगित करे . वर्तनी दोष भी बताएं .कृपा होगी
साभार
अमिता
पुनश्च : वर्तनी के दोष भी कमोबेश दिखाई देते हैं !
नमन, आ. अमिता तिवारी जी, और, हाँ शुभ प्रभात ! माननीया, अतुकांत ( छंद मुक्त ) कविता में भी आपने क्षमा करें, अनावश्यक तुकांतता पर आश्रय , भाव के अपेक्षाकृत अधिक लेकर सोच की गहनता को प्रभावित किया है। कहना न होगा, इससे एक अच्छी सोच कविता का सोच और उस का गांभीर्य कम हुआ है। फिर भी प्रस्तुति अच्छी ही कही जाएगी ! सादर
मुहतरमा अमिता जी , सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें I
आ० मथानी जी
आभार
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