ग्रीष्म में भी लू गरीबो को ही लगती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
रिक्त उदर जीर्ण वस्त्र छत्र आसमान है
हाथ उनके लगे बिना देश में न शान है
काया कृश सजल नयन दघ्ध ह्रदय करती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on December 29, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,
अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.
किये थे वादे हमने जो, मुझे भी याद है वो सब,
मनाया जश्न जो कुछ दिन, उसे तो याद रक्खोगे.
मुझे दिल्ली नहीं दिखती, समूचा देश दिखता है,
बिके हैं लोग…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
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