122-122-122-122
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मैं रूठा हूँ तुमसे, मना क्यूँ न लेती।
अदाओं का जादू, चला क्यूँ न लेती।।
गज़ब का नशा है जो,तेरी नज़र में।
तो हाला ये तू, आज़मा क्यूँ न लेती।।
पता है मुझे सिर्फ़, धोखाधड़ी है।
हक़ीक़त पता तू,लगा क्यूँ न लेती।।
जो डरती है हासिल,गँवाने से ग़र तू।
तो इन आंसुओं को छिपा क्यूँ न लेती।।
सुना है तेरे जिस्म में दामिनी है।
चिता पर हूँ लेटा,जला क्यूँ न देती।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 30, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 22, 2015 at 12:15am — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 9, 2015 at 4:00pm — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 6, 2015 at 11:32pm — No Comments
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