सन अड़तालीस की तीस जनवरी के दिन
नहीं मरे थे तुम
बापू
तुम एक गोली से
मर भी नहीं सकते थे
तुम्हारे जर्जर हो चुके शरीर को
सिर्फ भेद पाई थी
वह गोली
चंद सूखी लकड़ियों से भी
नहीं जल सकते थे तुम
बापू
तुम्हारी चिता जला पाई थी
सिर्फ तुम्हारे अचेत शरीर को
तुम्हे कंधा देने
उमड़ पड़ा था पूरा देश
आज भी बदस्तूर जारी है
तुम्हें कंधा देना
बापू
आज भी हर घर…
ContinueAdded by hemant sharma on December 7, 2013 at 12:00am — 9 Comments
ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं
कि कोई तांक झांक न कर सके
लेकिन यहां एक खिड़की है
शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है
एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है
और घूंघट ओड़कर चली जाती है
एक मोटर इस वस्ती से निकलकर
एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है
उसके कपड़ॆ बहुत उजले हैं
और महीन भी बहुत हैं
नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं
और महीन रेशों के बीच से
परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों…
ContinueAdded by hemant sharma on December 2, 2013 at 11:00pm — 8 Comments
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