भोर को निशा बना दे, अंधकार ही घना दे।
हो सके तो श्वांस ना दे, आदमी को आदमी।
लोभ के गुणों को जापे, हर्ष के लिए विलापे।
स्वार्थ में कठोर शापे, आदमी को आदमी।
भाग में रहा बदा है, जोड़ता यदा कदा है।
बांटता चला सदा है, आदमी को आदमी।
शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा।
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।
_____मौलिक/अप्रकाशित______
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:39pm — 10 Comments
“सर! निगम के सी. ई. ओ. के घोटालों की पूरी रिपोर्ट मैंने फायनल कर दी है। प्रिंट में जाये उससे पहले आप एक नज़र डाल लीजिए...” एडिटर इन चीफ ने रिपोर्ट पर सरसरी निगाह डाली और लापरवाही से उसे टेबल के किनारे रखे ट्रे पर डालते हुये कहा – “इसे छोड़ो, इस केस में कुछ नए डेवलपमेंट्स पता चले हैं... उन सब को एड करके बाद में देखेंगे... बल्कि तुम ऐसा करो कि नए आर॰ टी॰ ओ॰ से संबन्धित रिपोर्ट को जल्दी से फायनल कर दो, उसे कल के एडिशन में देना है...”
वह अपने चेम्बर में बैठ कर आर॰ टी॰ ओ॰ से संबन्धित…
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 10:00am — 8 Comments
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