For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोर को निशा बना दे, अंधकार ही घना दे।
हो सके तो श्वांस ना दे, आदमी को आदमी।

लोभ के गुणों को जापे, हर्ष के लिए विलापे।
स्वार्थ में कठोर शापे, आदमी को आदमी।

भाग में रहा बदा है, जोड़ता यदा कदा है।
बांटता चला  सदा है, आदमी को आदमी।

शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा।
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।

_____मौलिक/अप्रकाशित______

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 25, 2013 at 8:36pm

भाई संजय हबीबजी, आपकी इस घनाक्षरी के लिए बधाई और शुभकामनाएँ.
इसके प्रवाह पर तनिक और आग्रही होना बनता है.
वैसे कथ्य के हिसाब से आपकी रचनाओं पर कहने के लिए नहीं, बल्कि गुनने के लिए तत्त्व होते हैं.
शुभेच्छाएँ.

Comment by ram shiromani pathak on December 20, 2013 at 9:45am

सुन्दर  प्रवाह व सुन्दर घनाक्षरी आदरणीय मिश्रा जी। ....... हार्दिक बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:40am

आदरणीय संजय भाई

संदेश परक घनाक्षरी हेतु हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 7:38pm

अदरणीय संजय भाई , लाजवाब छ्न्द रचना हुई है , मज़ा आ गया पढ़ के ।  आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on December 19, 2013 at 1:53pm

सुंदर एवं संदेश परक घनाक्षरी हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारे आ० संजय हबीब जी । 

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 1:50pm

बहोत सुन्दर .. बधाई आदरणीय संजय जी | सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on December 19, 2013 at 1:28pm
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2013 at 12:14pm

आदरणीय  हबीब जी

आपकी घनाक्षरी की विशेषता यह है  कि आपने इसमें स्वर एवं व्यंजन मैत्री का कुशल निर्वाह किया है i

एतदर्थ आपको बधाई i  

Comment by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 10:21am

शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा। 
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।..aameen!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 18, 2013 at 10:13pm

शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा। 
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।-----बहुत सुन्दर सार्थक बात कही है ,शानदार घनाक्षरी हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय संजय हबीब जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service