राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी गर्दन मरोड़ दी... “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय जयकार करती हुई सहर्ष अपने अपने कामों में लग गई।
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था... हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूंजी... “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकाल कर अन्यत्र छुपा दी है... प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई... राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच प्रजा अब स्वयं अपने हाथों से ‘सत्तारानी’ के कक्ष कि चाबी आपको सौंप कर जाएगी...”
राजकुमार के होंठों के साथ ही पूरे दरबार में एक आशावादी मुस्कुराहट नृत्य करने लगी।
____________मौलिक/अप्रकाशित____________
Comment
सादर आभार स्वीकारें आदरणीय भाई Shubhranshu Pandey जी...
सादर आभार स्वीकारें आदरणीय Kapish Chandra Shrivastava जी...
सादर आभार स्वीकारें आदरणीया Dr.Prachi Singh जी...
सादर आभार स्वीकारें आदरणीया coontee mukerji जी...
//यह कथा अंत में बहुत बोलती हुई लगी//
यानि कथा में "कथावाचक" के गुण आ गए...हा हा हा... तय है, आपके संकेत भविष्य में मुझसे ऐसी पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे... :)))
महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन हेतु अनुज का सादर आभार स्वीकारें... आदरणीय Saurabh Pandey बड़े भईया
सादर आभार आदरणीया annapurna bajpai जी...
सादर आभार आदरणीय बृजेश नीरज जी...
सादर आभार आदरणीय Sushil.Joshi जी...
सादर आभार आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी...
सादर आभार आदरणीया मीना पाठक जी...
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