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सुरेश कुमार 'कल्याण''s Blog (46)

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।

जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।

जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।

सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।

मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।

परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।

हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।

छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।

बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे

झोल।

गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।

दिनभर…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 14, 2025 at 8:30pm — No Comments

दोहा सप्तक

दोहा सप्तक

----------------

चिड़िया सोने से मढ़ी, कहता सकल जहान।

होड़ मची थी लूट लो, फिर भी रहा महान।1। 

कृष्ण पक्ष की दशम तिथि, फाल्गुन पावन मास।

दयानंद अवतार से, अंधकार का नास।2। 

टंकारा गुजरात में, जन्में शंकर मूल।

दयानंद बन बांटते, आर्य समाज उसूल।3।

जोत जगाकर वेद की, दिया विश्व को ज्ञान।

त्याग योग संस्कार ही, भारत की पहचान।4। 

कहा वेद की भाष में, श्रेष्ठ गुणों को धार।

लक्ष्य…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 23, 2025 at 3:30pm — 3 Comments

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

-----------------------------

देवलोक भी जोहता,

चकवे की ज्यों बाट।

संत सनातन संग कब,

सजता संगम घाट।1।

तीर्थराज के घाट पर,

आ पहुँचे वो संत।…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 4, 2025 at 11:00am — 1 Comment

दोहा अष्टक (प्रकृति)

*दोहा अष्टक* 

------------------

पहन पीत पट फूलते,

सरसों यौवन बंध।

चिकनाहट सी गात में,

श्वास तेल की गंध।1।

उड़ते हुए पराग कण,

मधुकर कर गुंजार।…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 29, 2025 at 5:00pm — 3 Comments

छः दोहे (प्रकृति)

छः दोहे (प्रकृति)

----------

अलंकार सम रूख धर,

रंग बिरंगा रूप।

पुष्प पात फल वृन्त रस,

बाँट रहे ज्यों भूप।1।

धरा गगन के मध्य में,

मेघों का संचार।

शांत करें तन ताप मन,

ज्यों शीतल उद्गार।2।

हर्षाए से मेघ भी,

जल भर लाए थाल।

नव अंकुर मुँह खोलते,

ज्यों तरिणी…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 24, 2025 at 5:30pm — 1 Comment

दोहे (प्रकृति)

  *दोहे (प्रकृति)*

 

कुदरत पूजूँ प्रथम पद,

पग - पग पर उपकार।

अस्थि चर्म की देह मम,

 पंच तत्त्व का सार।1।

 

दसों दिशाएं मन बसीं,

 करते कवि अरदास।

धरा अग्नि रवि वायु…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 18, 2025 at 12:30pm — 1 Comment

मकर संक्रांति

 

प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत

सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन

होता जीवन में नव संचार

बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र

ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते

युवा बुजुर्गों संग बाल

कर्णप्रिय लोकगीतों की मधुर सी धुन…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 13, 2025 at 8:00pm — 2 Comments

सूरज सजीले साल का

सूरज सजीले साल का

------------------------------

ठंड से ठिठुरती सुनसान गलियां 

ओसाए हुए से सुन्न पड़े खेत 

घुटती जमती लाचार सी जिंदगी

धुंध के आगोश में गुम होता जीव - जगत 

ठिठुरती ठिठुरन को दूर करने 

आ गया सजकर सूरज 

नए नवेले सजीले साल का ।

शीत सी शीतल होती मानवता 

नूतन निर्माण करने 

निचले - कुचले 

पद - दलित का कल्याण करने 

साधु सन्यासी का त्राण करने 

विप्लव का…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:57pm — No Comments

नूतन वर्ष

नूतन वर्ष

------------

दुल्हन सी सजी-धजी 

गुजर रहे साल की अंतिम शाम ।

लोग मग्न हैं 

जाने वाले वर्ष की विदाई में 

कुछ नवागंतुक के स्वागत में।

कोई मंत्र उच्चारण - हवन करने में …

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 31, 2024 at 7:35pm — 3 Comments

एक बूँद

एक बूँद
------------

सिहर गया तन - बदन
झूम उठा रोम - रोम
नयनों के कोने से मस्ती की झलक
कदमों की शिथिलता
होती हुई गतिमान
मन में उठती लहरें जैसे
बातें कर रहा हो हवा से अश्व
सबकुछ लगता बदला - बदला सा
जब तन से तन्मय हुई
एक बूँद प्रेम की छुअन ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

सुरेश कुमार 'कल्याण'

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 23, 2024 at 11:19am — 1 Comment

कमियाँ बुरी लगती हैं

मुझे बता दो कोई

मेरी कविता की कोई कमियाँ 

मेरी ही नहीं 

चाहने वालों के संग

न चाहने वालों की भी

मात्र कविता ही नहीं 

जिंदगी भी 

सुधारना चाहता हूँ मैं

प्रशंसा सुनना चाहता है मन

कमियाँ बुरी लगती हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 23, 2024 at 9:59am — No Comments

मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)

कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।

मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।

ब्रह्मसरोवर तीर पर, सजता संगम सार।

बरसे गीता ज्ञान की, मार्गशीर्ष में धार।2।

पावन अगहन मास में, करके यमुना स्नान।

अन्न वस्त्र के दान से, खुश होते भगवान।3।

चुपके - चुपके सर्द ले, मार्गशीर्ष की ओट।

स्वर्णकार ज्यों मारता, धीमी - धीमी चोट।4।

साइबेरियन सर्द में, खग करते परवास।

भारत भू पर शरण लें, मार्गशीर्ष में…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 9, 2024 at 8:30pm — 1 Comment

लघुकविता

वह दरदरी दरी का रंगीन झोला 

डाकिए की तरह कंधे पर लटका कर 

हाथ में लकड़ी की तख्ती लेकर 

विद्यालय जाना 

पुरानी काली कूई पर

तख्ती पोंछकर मुल्तानी मिट्टी मलना 

धूप में सुखाकर सुलेख लिखना 

और वाहवाही लूटना 

मेरे सुखद अनुभव जिनसे 

अगली पीढ़ियाँ अनभिज्ञ रहेंगी। 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 4, 2024 at 2:00pm — 3 Comments

सावन

घोर घटा घन नाच नभ, मचा मनों में शोर।

विरह विरहणी तड़पती, सावन चंद चकोर।।

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 21, 2024 at 3:09pm — No Comments

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।

त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।

बरस रहे अंगार, धरा ये तपती जाए।

जीव जगत पर मार, पड़ी जो सही न जाए।

पेड़ लगा 'कल्याण', तुझी से यह आस जगी।

हरी - हरी हो भूमि, बुझे जो यह आग लगी !

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 29, 2024 at 8:00pm — 2 Comments

दीवाली

कुंडलियां*

हर घर की मुंडेर पर,
दीप जले चहुँ ओर।
दीवाली की रात है,
बाल मचाएं शोर।
बाल मचाएं शोर,
शोर ये बड़ा सुहाना।
भूलचूक सब भूल,
रहा लग गले जमाना।
खाओ रे *'कल्याण',*
मिठाई डिब्बे भर - भर।
खुशियाँ मिली अपार,
हुआ है रोशन हर घर।

*दोहा*

बढ़ें उजाले की तरफ,
हम सबके ही पांव।
इस दीवाली ना रहे,
अंधेरे में गांव।।

मौलिक एवम् अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 27, 2022 at 8:34pm — No Comments

समयानुकूल

बयालीस हैं जा चुके,बीत रहा है काल।

सुखदुख चलते साथ में,जीवन इक जंजाल।।

यारों की ये कामना,रहे सदा ही साथ।

यार सलामत हों सदा, हे नाथों के नाथ।।

उन्यासी उन्नीस सौ,माह सितंबर जान।

सोलहवीं तारीख थी, जब जन्मे 'कल्याण'।।

गुरु आभे ने लिख दई,यही जन्म तारीख।

गुरु न देते ज्ञान तो, फिरूं मांगता भीख।।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 17, 2021 at 12:01pm — No Comments

मातृभाषा हिंदी

हिंदी हमारी मातृभाषा, हिंदी जीवन का आधार ।

हिंदी की महिमा को गाते,करते हम इसका प्रचार ।।

हिंदी के बिना जीवन सूना,हिंदी देती सबको ज्ञान ।

मन के भाव प्रकट हों सारे, पूरे करती ये अरमान ।

मातृभाषा की महिमा देखो, सुनकर होता है अभिमान ।

कोर्ट कचहरी दफ्तर सारे, बाबू कलेक्टर चौकीदार ।

हिंदी की महिमा........................................... ।

माँस से नाखून दूर ना जाएँ, कौए चलें ना हंस की चाल ।

हिंदी के सब रंग में रंग लो, अपनी…

Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 13, 2020 at 11:30am — 3 Comments

बसंत पंचमी

माघ शुक्ल की पंचमी, कामदेव के लाल।

दोनों मिलकर आ गए, कण-कण हुआ निहाल ।।



कोयल काली कूकती, खुश हो नाचे मोर ।

माया जिसकी मोहनी,वही मदन चितचोर ।

गेंदा गुलाब ज्यों खिले,खिले गुलाबी गाल।

दोनों मिलकर-------------------।



आई बसंत पंचमी, खुशियों का आगाज ।

वाणी में रस घोलकर, गले मिलें सब आज।

सर्द रैन अब जा चुकी, हटा धुंध का जाल।

दोनों मिलकर --------------------।



ताजा-ताजा लग रहे,गिरा पुराने पात।

डाल डाल को चूमती, भूल अहं औकात… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 31, 2017 at 11:30am — 6 Comments

एक जलज-वीराने में

एक जलज - वीराने में

चहकता हुआ

महकता हुआ

दाग नहीं लगने दिया कभी

आब के छींटे का भी

चक्रवातों में घिरा रहा था

जिन्दगी भर।



लौट चले वो झख मारकर

धक्के खाकर थक हारकर

नाखून घिसाकर दाँत किटकिटाकर

आँधी तूफान भँवर

और

चक्रवात भी।



फिर भी लहलहाता रहा

वह वारिज

कोशिश में

अंबर को नापने की।



चुभने लगी

खुद की ही कलियाँ

शूल बनकर

सताने लगे स्व-सद्कर्म

भूल बनकर।



समझ में आया

क्या… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 22, 2016 at 2:30pm — 14 Comments

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