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Janki wahie's Blog (26)

मायरा ( लघु कथा ) जानकी बिष्ठ वाही

मानों कयामत बरपा हो गई। पूरा शहर लबालब भरा है।चारों ओर त्राही-त्राही मची हुई है। शिवानी प्रसव वेदना से तड़प रही है। शरद पैदल ही उसे अस्पताल ले जा रहा है

"अब बचना मुश्किल है।"कराहते हुए शिवानी बोली।

पानी गले-गले तक पहुँच गया।जीवन की आशा क्षीण हो चली है। एक अज़नबी तैरता हुआ करीब आया।

"मैं आप लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने आया हूँ।"

उसकी मदद से शरद समय पर शिवानी को अस्पताल पहुंचाने में सफ़ल हो गया।

"शुक्रिया ! आज़ तुम न होते तो जाने क्या होता? "शरद ने कहा।

"ये तो…

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Added by Janki wahie on December 10, 2015 at 5:30pm — 10 Comments

चैनल दर चैनल ( लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही

"कितने मिष्ठ भाषी,सौम्य और मिलनसार थे तेरे पापा ।आज़कल न जाने उन्हें क्या हो गया।" माँ ने राघव से कहा।

" माँ ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।मैं आज़ ही अपने मनोचिकित्सक दोस्त विवेक से इस बारे में बात करता हूँ।कि इस बदले व्यवहार का क्या कारण है।"

छः महीने पुरानी बात थी ज़ब पापा रिटायर हुये थे खूब खुश थे।

" बहुत काम कर लिया ।अब तो जिंदगी जीनी है।"

बस तभी से घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। चैनल दर चैनल ये सिलसिला बढ़ता ही गया।

सुबह होते ही हिदायतें शुरू हो जाती।" आरव को…

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Added by Janki wahie on November 11, 2015 at 5:30pm — 15 Comments

हमीद की माँ की मुस्कान ( लघु कथा )

जयेश के घर चारों मित्र सपरिवार ज़मा हैं। हँसी-ठहाके, दुःख-दर्द चाय और समोसों के साथ उड़ाये जा रहे हैं।



टीवी चैनलों पर सहिष्णुता और असहिष्णुता पर दिग्गज लोगों की बहस ज़ारी है।

धर्म, राजनीति और देश,बहस के रूप में कमरे का तापमान बढ़ानें को पर्याप्त हैं । पत्नियाँ दूसरे कोने में अपने-अपने घर -बच्चों में रमी हैं।



एकाएक चंद्रप्रकाश ने दीवार पर लगे पारिवारिक चित्र को देख कर पूछा -" जयेश ! तुम तो बहुत छोटे हो इसमें बाकि और कौन-कौन हैं ?"

"हम चार भाई ,दीदी,माँ -पिताजी और… Continue

Added by Janki wahie on November 6, 2015 at 5:49pm — 17 Comments

चाँदी के बटन ( लघु कथा )

सुनार की दुकान में बैठी नीलिमा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी।कि 75- 78 वर्ष के बुजुर्ग पर ध्यान चला गया।

" आओ -आओ आज़ क्या बनवा रहे हो अपनी बुढ़िया के लिए।" सुनार मोती लाल ने कहा।

ज़ेब से सुंदर चाँदी के बटन निकाल बुजुर्ग बोले , " इनमें चाँदी के घुंघुरू लगा दो।"

" आहा बुबू जी ! कितने सुंदर हैं ये ; कहाँ से बनवाये ? " नीलिमा ने उनको बैठने की ज़गह देते हए पूछा।



"चेली ! ये असली चाँदी नहीं है। नकली बटन हैं "

"अरे , तो फ़िर इनमें असली चाँदी के घुंघुरू क्यों लगवा रहे… Continue

Added by Janki wahie on November 3, 2015 at 5:22pm — 14 Comments

- अंधे-

- अंधे - ( लघु कथा )



" माई ओ माई ! " चिल्लाते हुए श्यामू ने राम रत्ती को आवाज़ लगाई।

" क्या है रे ! आज़ कौन सा तीर मार लाया ?"

" ये ले माई !" तेल से भरा डिब्बा और चावल उरद की कच्ची खिचड़ी सामने रख दी।

" वाह , और पैसे ?"

" ये ले पूरे 86 रूपये हैं ।"

" बहुत खूब बेटा ! दस-पन्द्रह दिन तो खाने का अच्छा जुगाड़ हो गया।"



" माई ! एक बात मेरी समझ में नहीं आती ?"

" क्या ?" सामान सहेजती रामरत्ती ने नज़रें उठाई।

" सारे लोग अपनी अला-बला ज़ादू -टोना हर… Continue

Added by Janki wahie on November 1, 2015 at 6:40pm — 13 Comments

सोच

तीन दिन से जितनी तेज़ी से मूसलाधार बारिश हो रही है , उतनी ही तेज़ी से रामचरण के घर में भूख की भट्टी ज़ल रही है।



" अदालत तक चलोगे भाई ?"

"ज़रूर साहब जी"

"तेरा लाख-लाख धन्यवाद भगवान " कह रामचरण रिक्शा हाँकने लगा ।

"अरे भाई ! आज़ कोई चलने को तैयार ही नहीं हो रहा, तुम कैसे हो गए ?"

"साहब जी,ये पेट क्या न कराये ।"

"हाँ...ठीक कह रहे हो भाई ,कितना कमा लेते हो दिन भर में ?"

"बस चूल्हा ज़ल जाता है साहब जी।"

"सुनो,एक बात कहूँ ,मज़बूरी न होती तो मैं तुम्हारे रिक्शे… Continue

Added by Janki wahie on October 3, 2015 at 5:53pm — 4 Comments

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