पड़ते दुख के घाट पर, कभी न जिनके पाँव
समझ न आता है उन्हें, जग में रोता गाँव।१।
*
चल आती है जो खुशी, दुख बैठा जिस राह
पुरखों से सुनते वही, टिकती बहुत अथाह।२।
*
सुख से सुख की कब हुई, तुलना जग में बोल
सुख का करते मान हैं, बजकर दुख के ढोल।३।
*
दुख आकर देता सदा, सुख को रंग हाजार
उस बिन फीका ही रहे, सुख का घर संसार।४।
*
दुख तो ऐसा बौर है, जिस भीतर सुख बीच
जोर-जबर से कब इसे, कोई सका उलीच।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 22, 2024 at 6:00am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कानों से देख दुनिया को चुप्पी से बोलना
आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।
*
कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के
जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।
*
कब जाग जाये कौन सा बदज़ात जानवर
सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।
*
करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम
चाहे पड़े भकोसना या फिर कि चोलना।४।
*
चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं
जिस में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments
निभाकर रीत होली में
दिलों को जीत होली में।१।
*
भरें जीवन उमंगों से
चलो गा गीत होली में।२।
*
सभी सुख दुश्मनी छीने
बनो सब मीत होली में।३।
*
बहुत विरही तड़पता है
सफल हो प्रीत होली में।४।
*
किसी को याद मत आये
गयी जो बीत होली में।५।
*
लगे अब रोग कहते हैं
दुखों को पीत होली में।६।
*
गिरा दो रंग बरसाकर
खड़ी हर भीत होली में।७।
*
यही अरदास है पिघलें
दिलों की शीत होली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments
नगर भर चले दौड़ काली हवा
है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।
*
गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर
बजा पात कहती है ताली हवा।२।
*
कभी दान जीवन सभी को दिया
हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।
*
कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे
नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।
*
कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन
गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।
*
तनिक तो कहीं बात होती है कुछ
किसी की चली कब है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
*
हमें एक नदिया मिली नाम की
न थी वो किसी प्यास के काम की।१।
*
जिसे देश कहते हैं सब राम का
वहीं पर फजीहत हुई राम की।२।
*
दुखाती है मन जो महज याद से
करो अब न बातें उसी शाम की।३।
*
बिना उस के ये भी परायी गली
शरण में चलें कौन से धाम की।४।
*
मिटायेगी वाणी सभी दूरियाँ
मिठासें रखो बस पके आम की।५।
*
चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर
घड़ी आ गयी तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 29, 2024 at 10:42pm — No Comments
जिन्हें भाव जग में खले दीप के
वही कहते आरे चले दीप के।१।
*
यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के
तमस जी रहा है तले दीप के।२।
*
बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को
नहीं एक हम ही छले दीप के।३।
*
चले है तमस यूँ दिखा आँख जो
लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।
*
कहाँ कब जले घर नहीं है पता
इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।
*
परायों से बढ़ आज अपनो से भय
न बाती ही कालिख …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments
अँधेरे उजाले मिले प्यार से
चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।
*
नहीं काम आता किसी के कोई
मिटे दुख भला कैसे संसार से।२।
*
हटा मैल मन का तनिक भी नहीं
नहा कर चले नित्य हरिद्वार से।३।
*
न बदला है कोई किसी के कहे
जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।
*
अकेले न तुम हो असंतुष्ट अब
हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।
*
शिखर चाहते हैं सजाना बहुत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments
करुण रुदन करता नहीं, कोई जाता देख
चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।
*
कैसे मुख अब फेर लूँ, मन में लिए सवाल
इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।
*
यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष
लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।
*
स्वागत को हर्षित हुए, करें विदा तो हर्ष
क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।
*
साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार
वही बिछड़ते दे रहा, नया साल उपहार।५।
*
नये …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments
2122/१२१२/२२
***
दिल की कालिख सँवार आँखों में
कह रहे सब खुमार आँखों में।१।
*
फिर सुहाता न कोई भी उस को
उग गया जिस के खार आँखों में।२।
*
वार करती है जानलेवा वो
क्या लिए है कटार आँखों में।३।
*
दिल तो बेचैन उस की बातों से
दिख रहा पर करार आँखों में।४।
*
सिर्फ दुख से न होती नम लोगो
हर्ष भी लाता धार आँखों में।५।
*
मन की चाहत सुबास सरसों की
खिल गयी पर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी
कैसे हो उस की यार तबीयत हरी भरी।१।
*
वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा
आशीष लाड़ डाँट नसीहत हरी भरी।२।
*
सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत
रखता है मन में कौन मुहब्बत हरी भरी।३।
*
बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं
रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।
*
बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ
दो ईश खूब सब को ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments
२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों की रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन पाऊँ कि तू नदी बन जा।२।
*
हो गया जग ये शीत का मौसम
धूप सी तू तो गुनगुनी बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों पे शायरी बन जा।५।
*
इस नगर में तो सिर्फ मसलेंगे
फूल जाकर तू जंगली बन जा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 3 Comments
221/2121/1221/212
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सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
*
उर्वर करेगा कोई तो फिर से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
*
कीटों के प्रेत नोच के हर शब्द ले गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
*
पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के दौर प्यार के तेवर सँभालकर।४।
*
फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
***
ये सच नहीं कि रूप से वो भा गयी मुझे
बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।
*
सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर
कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।
*
दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर
रिश्तों की ढाल भेद के झुलसा गई मुझे।३।
*
अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे
पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।
*
नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ
दो एक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २
**
पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद
हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा चाँद।१।
*
आस नयी जब लिए अटारी झाँका होगा चाँद
मन कहता है झुँझलाहट से बिफरा होगा चाँद।२।
*
हम होते तो कोशिश करते बात हमारी और
शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद।३।
*
चाँद बिना हम यहाँ नगर में जैसे काली रात
अबके पूनौ हम बिन भी तो आधा होगा चाँद।४।
*
बातें करती होगी बैठी याद हमारी पास
कैसे कह दें तन्हाई में तन्हा होगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2023 at 12:33pm — 4 Comments
२२/२२/२२/२
*
कुछ हो मत हो नेता दिख
मुख से निकला वादा दिख।१।
*
दुनिया को गर खुश रखना
उसके हित बस खटता दिख।२।
*
शीष नवायें सब तुझ को
इच्छा है तो दादा दिख।३।
*
लोकतन्त्र की रीत निभा
राजा होकर जनता दिख।४।
*
खबरों में गर आना है
नियमित से बस उल्टा दिख।५।
*
भीड़ जुटानी अगल बगल
जीने से बढ़ मरता दिख।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments
२२२२/ २२२२
जब दंगों का मंजर देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो मानव जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख तब से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments
जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments
हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।
हो जाता है इस से जग में, देश हमारा नंगा।।
एक साथ में रहते देखो, बीतीं कितनी सदियाँ।
फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।
*
क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।
क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।
जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।
झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।
*
वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments
कोई भी नेता हमारा वादे का सच्चा नहीं
घोषणा करता मगर कुछ लोक को देना नहीं।१।
*
हर बहस के पीछे केवल कुर्सियों की टीस है
शेष सन्सद में हमारे हित कोई झगड़ा नहीं।२।
*
बस चुनावी वक्त में ही रात दिन चर्चा में हम
शेष वर्षों में हमीं को उन का दिल धड़का नहीं।३।
*
लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ
भीड़ में भी बोलिए तो कौन अब तन्हा नहीं।४।
*
विष घुली नदिया सा जीवन कर के नेता चैन में
लोक उनके आचरण को क्यों भला समझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2023 at 5:48am — 4 Comments
यह तन जो साँसों का घर है।
टूटेगा ही, जब नश्वर है।।
*
साँस महज है पवन डोलती।
तन रहने तक समय तोलती।।
केवल मन की हमजोली बन,
तन को उकसा द्वार खोलती।।
*
कच्ची स्याही, कच्चा कागज,
मिटने वाला हस्ताक्षर है।
*
अभिलाषा पर अभिलाषा गढ़।
मन बढ़ जाता, तन सीने चढ़।।
उस पर भी कर सीनाजोरी,
सब दोषों को तन पर दे मढ़।।
*
मन के कर्मों का अपराधी,
तन हो जाता यूँ ऊसर है।।
*
सतरंगी चञ्चलता मन की।
सह ना पाती जड़ता तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2023 at 5:52pm — 2 Comments
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