Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 25, 2011 at 10:00pm — 3 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 22, 2011 at 10:18pm — 1 Comment
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 8:54pm — No Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 10:34am — 2 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 10:30am — 4 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 18, 2011 at 9:12pm — No Comments
एक ग़ज़ल
धुंधले हैअक्स सारे,कुछ तो दिखाइये
इस बोदे आईने को थोडा हटाइये
सावन के आप अंधे,दीखेगा ही हरा
रुख दूसरे के जानिब चेहरा घुमाइये
अरायजनवीस लाखों जीते तो मिल गये
अब हार की सनद ये किस से लिखाइये
कैसे करेंगे अब हम खेती गुलाब की
गमलों की है रवायत,कैक्टस उगाइये
खाली हुई चौपाल और उजड़ा हुआ अलाव
हुक्का है…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 1:09am — 1 Comment
आंधी थी जो कर गयी,आँगन आँगन रेत
आई थी तो जायेगी,कहाँ रेत को हेत
रात चांदनी दूर तक टीलों का संसार
अळगोजे*की तान में बिखरा केवल प्यार
हडकम्पी जाड़ा पड़े,चाहे बरसे आग
सहज सहेजे मानखा माने सब को भाग
सतरंगी है ओढ़नी,पचरंगी है पाग
जीवन चाहे रेत हो मनवा खेले फाग
सुबह हुई कुछ और था,सांझ हुई कुछ और
आदम की नीयत हुआ,इन टीलों का तौर
…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 12:49am — No Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 2:30pm — 10 Comments
चिड़िया तुम चहचहाइ
पौ फटने पर
तुम्हारे चहचहाने पर ही है
दारोमदार पौ फटने का.
अँधेरे को फाड़ कर निकलता
सिन्दूरी सूरज का गोला
चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का
तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है
जीवन में रंग
पेड़ों को पराग
गेंहूँ को बाली
आदमी को भरा धान का कटोरा
मिला है तुम्हारे ही गीतों से
जानता हूँ आदमी आजकल
धान का कटोरा नहीं
बन्दूक की गोली लिये
ढूँढता है तुम्हे
पर…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 12, 2011 at 10:30pm — No Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 11, 2011 at 10:39pm — No Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 9, 2011 at 11:30pm — No Comments
तभी तो कारवां ये बदगुमां है
निगाहे शौक से देखे अगर वो
ज़हां में आशियां ही आशियां है
उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ
मेरी आँखों के आगे इक मकां है
छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से
न जाने कौन अपने दर्मियां है
वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी
हर इक तारीख में अँधा कुआं है
दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ
जमीं की आग सा मेरा बयां है
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment
मिमिया रहे है लोग
ये कौन क़त्ल हो गया
बतिया रहे है लोग
पूनियों सा वक़्त को
कतिया रहे है लोग
संवेदना की मौत पर
खिसिया रहे है लोग
धोखे की टट्टियों को
पतिया रहे है लोग
कुर्सी पे बैठे बैठे
गठिया रहे है लोग
आदम नहीं गधे सा
लतिया रहे है लोग
मौके भुना रहे है
हथिया रहे है लोग
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments
एक
जब से हुई है बंद दुकानें उधार की
रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की
सावन के रंग अब के फीके लगा किये
ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की
बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े
हद देख ली है हम ने सब के मयार की
हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता
मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की
बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा
कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की
किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें
लिखी गयी कहानी उनसे शिकार…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 4, 2011 at 6:30pm — 3 Comments
बड़े कवि
बड़े कवि
बड़ी कविता लिखते है
जिसे बड़े कवि पढ़ते है
फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए
कला साहित्य के
नए प्रतिमान गढ़ते है
बड़े कवि
ख़ारिज कर देते है
किसी को भी
तुक्कड़ या लिक्खाड़
कह कर
बड़े कवि
गंभीरता का लबादा ओढ़े
किसी नोबेल विजेता की
शान में कसीदे पढ़ते है
विदेशी कवियों को'कोट ' करते है
फिर उस 'कोट' के
भार…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 3, 2011 at 10:30pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |