For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"'s Blog (8)

लावणी छन्द,संपूर्ण वर्णमाला पर प्रेम सगाई

(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)

.

अभी-अभी तो मिली सजन से,

आकर मन में बस ही गये।

इस बन्धन के शुचि धागों को,

ईश स्वयं ही बांध गये।

उमर सलोनी कुञ्जगली सी,

ऊर्मिल चाहत है छाई।

ऋजु मन निरखे आभा उनकी,

एकनिष्ठ हो हरषाई।

ऐसा अपनापन पाकर मन,

ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,

और मेरे सपनों का राजा,

अंतरंग मालूम खड़ा।

अ: अनूठा अनुभव प्यारा,

कलरव सी ध्वनि होती है।

खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,

गहना…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 1, 2021 at 8:30am — 10 Comments

माधव मालती छन्द, नारी शौर्य गाथा

कष्ट सहकर नीर बनकर,आँख से वो बह रही थी।

क्षुब्ध मन से पीर मन की, मूक बन वो सह रही थी।



स्वावलम्बन आत्ममंथन,थे पुरुष कृत बेड़ियों में।

एक युग था नारियों की,बुद्धि समझी ऐड़ियों में।

आज नारी तोड़ सारे बन्धनों की हथकड़ी को,

बढ़ रही है,पढ़ रही है,लक्ष्य साधें हर घड़ी वो।



आज दृढ़ नैपुण्य से यह,कार्यक्षमता बढ़ रही है।

क्षेत्र सारे वो खँगारे, पर्वतों पर चढ़ रही है।

नभ उड़ानें विजय ठाने, देश हित में उड़ रही वो,

पूर्ण करती हर चुनौती…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 31, 2021 at 5:00pm — 4 Comments

कामरूपछन्द_वितालछन्द, माँ की रसोई

माँ की रसोई,श्रेष्ठ होई,है न इसका तोड़,

जो भी पकाया,खूब खाया,रोज लगती होड़।

हँसकर बनाती,वो खिलाती,प्रेम से खुश होय,

था स्वाद मीठा,जो पराँठा, माँ खिलाती पोय।

खुशबू निराली,साग वाली,फैलती चहुँ ओर,

मैं पास आती,बैठ जाती,भूख लगती जोर।

छोंकन चिरौंजी,आम लौंजी,माँ बनाती स्वाद,

चाहे दही हो,छाछ ही हो,कुछ न था बेस्वाद।

मैं रूठ जाती,वो मनाती,भोग छप्पन्न लाय,

सीरा कचौरी या पकौड़ी, सोंठ वाली चाय।

चावल पकाई,खीर लाई,तृप्त मन हो जाय,…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 25, 2021 at 8:30pm — 2 Comments

रसाल_छन्द, प्रकृति से खिलवाड़

सुस्त गगनचर घोर,पेड़ नित काट रहें नर,

विस्मित खग घनघोर,नीड़ बिन हैं सब बेघर।

भूतल गरम अपार,लोह सम लाल हुआ अब,

चिंतित सकल सुजान,प्राकृतिक दोष बढ़े सब।

दूषित जग परिवेश, सृष्टि विषपान करे नित।

दुर्गत वन,सरि, सिंधु,कौन समझे इनका हित,

है क्षति प्रतिदिन आज,भूल करता सब मानव,

वैभव निज सुख स्वार्थ,हेतु बनता वह दानव।

होय विकट खिलवाड़,क्रूर नित स्वांग रचाकर।

केवल क्षणिक प्रमोद,दाँव चलते बस भू पर,

मानव कहर मचाय,छोड़ सत धर्म विरासत…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 22, 2021 at 5:00pm — 2 Comments

"करो उजागर प्रतिभा अपनी"

प्रतिभा छुपी हुई है सबमें,करो उजागर,

अथाह ज्ञान,गुण, शौर्य समाहित,तुम हो सागर।

डरकर,छुपकर,बन संकोची,रहते क्यूँ हो?

मन पर निर्बलता की चोटें,सहते क्यूँ हो?

तिमिर चीर रवि द्योत धरा पर ले आता है।

अंधकार से डरकर क्यूँ नहीं छिप जाता है?

पराक्रमी राहों को सुलभ सदा कर देते,

आलस प्रिय जिनको,बहाने बना ही लेते।

तंत्र,मन्त्र,ज्योतिष विद्या,कर्मठ के संगी,

भाग्य भरोसे जो बैठे वो सहते तंगी।

प्रबल भुजाओं को खोलो,प्रशंस्य बनो,…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on April 27, 2021 at 3:00pm — 5 Comments

हास्य कुंडलिया

(1)

सारे घर के लोग हम, निकले घर से आज

टाटा गाड़ी साथ ले, निपटा कर सब काज।

निपटा कर सब काज, मौज मस्ती थी छाई

तभी हुआ व्यवधान, एक ट्रक थी टकराई।

ट्रक पे लिखा पढ़ हाय, दिखे दिन में ही तारे

'मिलेंगे कल फिर बाय', हो गए घायल सारे।।

(2)

खोया खोया चाँद था, सुखद मिलन की रात

शीतल मन्द बयार थी, रिमझिम सी बरसात।

रिमझिम सी बरसात, प्रेम की अगन लगाये

जोड़ा बैठा साथ, बात की आस लगाये।

गूंगा वर सकुचाय, गोद में उसकी सोया

बहरी दुल्हन पाय, चैन जीवन…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 17, 2019 at 4:00pm — 9 Comments

इज्जत

(ताटंक छन्द)

इज्जत देना जब सीखोगे, इज्जत खुद भी पाओगे,

नेक राह पर चलकर देखो, कितना सबको भाओगे।

शब्द बाँधते हर रिश्ते को, शब्द तोड़ते नातों को।

मधुर भाव जो मन में पनपे, बहरा समझे बातों को।

तनय सुता वनिता माता सब,भूखे प्रेम के होते हैं,

कड़वाहट से व्यथित होय ये, आँसू पीकर सोते हैं।

इज्जत की रोटी जो खाते, सीना ताने जीते हैं,

नींद चैन की उनको आती, अमृत सम जल पीते हैं।

नारी का गहना है इज्जत, भावों की वह…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 10, 2019 at 4:30pm — 3 Comments

गजल

2122 2122 2122 212

प्यार का तुमने दिया मुझको सिला कुछ भी नहीं,

मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं।

कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं,

फिर भी अपने ज़ुर्म का जिनको गिला कुछ भी नहीं।



राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में ,

मायने उनके लिए फिर काफिला कुछ भी नहीं।

हौंसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ,

बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।

ज़िंदगी चाहें तो बेहतर हम बना सकते यहाँ,

ज़ीस्त में…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 7, 2019 at 8:02pm — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service