For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212

प्यार का तुमने दिया मुझको सिला कुछ भी नहीं,
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं।

कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं,
फिर भी अपने ज़ुर्म का जिनको गिला कुछ भी नहीं।

राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में ,
मायने उनके लिए फिर काफिला कुछ भी नहीं।

हौंसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ,
बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।

ज़िंदगी चाहें तो बेहतर हम बना सकते यहाँ,
ज़ीस्त में ग़र रंजोगम का दाखिला कुछ भी नहीं।

रहते जो हर हाल में खुश वो कहाँ कहते कभी,
*जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं*।

चाह 'शुचिता' प्रेम की रख मंजिलें करती है तय,
प्रेम जीवन में अगर तो अधखिला कुछ भी नहीं।

मौलिक व अप्रकाशित




Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 18, 2019 at 2:05pm

प्रोत्साहन एवम मार्गदर्शन हेतु आप सभी का आभार व्यक्त करती हूँ।

Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 11:05am

आदरणीया सुचिसंदीप जी, अपनी ग़ज़ल और ग़ज़ल पर हुई सार्थक चर्चा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:13am

आद0 सुचिसंदीप अग्रवाल जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल का बढिया कोशिश है, शेष आद0 समर साहब ने विस्तृत रूप से बता दिया है, प्रयास जारी रखें। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Samar kabeer on January 14, 2019 at 12:13pm

// मतले में सिला और इत्तिला  अलिफ और ऐन का काफ़िया क्या सही माना जा सकता है?//

ये क़ाफ़िया सहीह नहीं है ।

// दूसरा 4 शेर में जो जिये दोनो हर्फ़े में मात्रा अलग होने से भी पढ़ने में जोजिये  होने से शब्द विकृत हो रहा है तो क्या इसे तनाफुर माना जाए या परिभाषा के अनुसार तनाफुर नहीं माना जाए//

इसमें तनाफ़ुर नहीं माना जायेगा ।

Comment by Ravi Shukla on January 14, 2019 at 11:07am

आदरणीया शुचिता जी ग़ज़ल के लिए दिली बधाई कुबूल करें । आपकी ग़ज़ल के बहाने से दो बिंदुओं पर विद्वत जन की राय जानना चाहेंगे मतले में सिला और इत्तिला  अलिफ और ऐन का काफ़िया क्या सही माना जा सकता है? दूसरा 4 शेर में जो जिये दोनो हर्फ़े में मात्रा अलग होने से भी पढ़ने में जोजिये  होने से शब्द विकृत हो रहा है तो क्या इसे तनाफुर माना जाए या परिभाषा के अनुसार तनाफुर नहीं माना जाए। सादर

Comment by PHOOL SINGH on January 10, 2019 at 12:02pm

"सुचिसंदीप जी" बहुत सूंदर रचना बधाई स्वीकारें

Comment by Samar kabeer on January 9, 2019 at 11:28am

एक बात कल बताना भूल गया था:-

'मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं'

इस मिसरे में 'इत्तिला' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "इत्तिला'अ''जिसका वज़न होगा2121 ।

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 9, 2019 at 11:05am

हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव भैया। आपका  मार्गदर्शन पाकर आह्लादित हुई।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 9, 2019 at 10:50am

सुचि बहन आ0 समर कबीर जी की इस्लाह के बाद ग़ज़ल में चार चांद लग गए। मक्ता यूँ कर सकती हो

प्रेम की शुचिता बहाकर जिंदगी में तुम जिओ

Comment by Samar kabeer on January 8, 2019 at 10:49pm

मक़्ता अभी और काम चाहता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service