शिकवों के दौर थे काफी,
साथ ना तेरे आने को,
पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,
तेरा साथ निभाने को।
अल्फाज़ों का शोर बहुत था,
तुझे दगा बताने को।…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on March 11, 2023 at 10:28pm — 10 Comments
Added by Dr. Geeta Chaudhary on May 3, 2020 at 2:00am — 4 Comments
ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,
रुको जरा , सांस लो तनिक ,
सम्भलो जरा I
सब कुछ पाने की चाह में ,
कुछ टूट गया उस आशियाने में,
कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,
ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I
रुको जरा ........
घर पर नन्हों की आस में ,
और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,
छूटे किसी साज और रियाज़ में ,
वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I
रुको जरा ........
लूडो की गोटियाँ खोजो ,
शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,
कैरम की धूल…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments
तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments
जब पीड़ा आसुओं को मात दे,
और संभाले ना संभले मन।
जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें,
और बेचैन हो ये अंतर्मन।
तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,
मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।
जब मेरी कमी तुमको खले,
और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन।
जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे,
और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन।
तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,
मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।
जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन,
और लहरों को देख विचलित हो मन।…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on December 26, 2019 at 2:00pm — 6 Comments
Added by Dr. Geeta Chaudhary on November 10, 2019 at 6:30pm — 8 Comments
स्मृति शेष, बनी विशेष।
कभी शूल सी चुभती हैं,
कभी बन प्रसून महकती हैं।
कभी अश्रु बन छलकती हैं,
कभी शब्दों में ढलती हैं।
स्मृति शेष, बनी विशेष।
अशेष, अन्नत प्रवाह पीड़ा का,
बिसराये ना बिसरती हैं।
सब छूट गया सब टूट गया,
शेष स्मृति का अटूट बंधेज।
स्मृति शेष, बनी विशेष।
कुछ…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on November 2, 2019 at 7:30am — 4 Comments
1. ये यादों का अकूत कारवां है,
नित बेहिसाब चला पर वही खड़ाI
2. तेरी हाथों की लकीरों का दोष,
या मेरी दुआओ का,
अकाट्य प्रवाह पहेली सा I
3. कभी शब्द भी मौन हुए,
कभी मौन मुस्काए है I
कभी अभिव्यक्तियों को पंख लगे,
कभी सन्नाटों के साये है I
4. बातो का सिलसिला टूटा नहीं तेरे जाने से,
बस फर्क इतना है तेरा किरदार भी निभाती हूँ मै I
5. यूँ तो जी भर जिया हमने जिन्दगी को साथ…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on October 20, 2019 at 8:14pm — 9 Comments
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