फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
धमनियों में दौड़ता यूँ तो सदा है ।।
रक्त है जो देश हित में खोलता है ।।
हौसला उस वीर का देखो ज़रा तुम ।
गोलियों की धार में सीना तना है ।।
रणविजय तक सांस ये चलती रहेगी ।
जीत से पहले यहाँ मरना मना है ।।
रक्त की हर बूंद रण में है गिरी जो
बूंद से रण बांकुरा इक उठ खड़ा है
हर जनम तेरा ही बेटा मैं बनूं माँ ।
आयु कम मां भारती का ऋण बड़ा है ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद लक्ष्मण धामी'मुसाफिर' जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद समर कबीर जी
जनाब प्रशांत दीक्षित 'सागर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब मुसाफ़िर जी की बात का संज्ञान लें ।
आ. भाई प्रशांत जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।
होसला को हौसला कर लीजिएगा
बूंद से रण बांकुरा इक उठ खड़ा है
इस मिसरे को यूँ करने से गुणवत्ता निखर सकती है ..सादर
'उससे नव रण बांकुरा इक उठ खड़ा है'
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