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उम्मीद क्या करना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२


रहेगा साथ सूरज यूँ  सदा  उम्मीद क्या करना
जलेगा साँझ होते ही दिया उम्मीद क्या करना।१।
**
जो बरसाता रहा कोड़े सदा निर्धन की किस्मत पर
करेगा आज  थोड़ी  सी  दया  उम्मीद  क्या करना।२।
**
बनाये  दूरियाँ  ही  था सभी  से  गाँव  में  भी  जो 
नगर में उससे मिलने की भला उम्मीद क्या करना।३।
**
चला करती है उसकी जब इसी से खूब रोटी सच
वो देगा छोड़ छलने की कला उम्मीद क्या करना।४।
**
हटाने का लगा  नारा  मिला  करती है कुर्सी जब
करेंगे वो  गरीबी  को  विदा  उम्मीद  क्या करना।५।
**
जिन्हें  आलोचना  से  ही नहीं  फुर्सत  पुराने  की
रचेंगे  देश  में  वो  भी  नया  उम्मीद  क्या करना।६।
**
जमाना व्यस्त छूने  में  गगन  के  चाँद तारों को
वो देगा इस गरीबी की दवा उम्मीद क्या करना।७।
**
मजा आता है जिसको बस सदा लाशें बिछाने में
चलेगा शव किसी का वो उठा उम्मीद क्या करना।८।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 2, 2020 at 4:11pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

इंगित मिसरे में आपका कथन उचित है । पर जिस प्रकार हिन्दी में सहीह" को सही के रूप में स्वीकार किया गया है उसी प्रकार "विदा'अ" को विदा के रूप मेंं । इसी कारण मैंने इस रूप में लिखा है । इसे अन्यथा नहीं लेंगे । सादर ...

Comment by Samar kabeer on June 2, 2020 at 3:13pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'करेंगे वो  गरीबी  को  विदा  उम्मीद  क्या करना'

आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "विदा'अ' 121 है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2020 at 4:22pm

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 1, 2020 at 3:15pm

भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, आदाब । बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने। शेअ'र दर शेअ'र दाद पेश करता हूँ ।

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